Friday, December 23, 2011

एक सत्य नेहरु खानदान मुस्लिम: गयासुद्दीन गाजी के वंशज :V.P.Singh

रॉबर्ट हार्डी एन्ड्रूज द्वारा लिखी गई पुस्तक "ए लैम्प फार इंडिया- द स्टोरी ऑफ मदाम पंडित।" के अनुसार गंगाधर असल में एक सुन्नी मुसलमान थे जिनका असली नाम गयासुद्दीन गाजी था।
इसकी पुष्टि के लिए नेहरू ने जो आत्मकथा लिखी है, उसको पढऩा जरूरी है। इसमें एक जगह लिखा है उनके दादा मोतीलाल के पिता गंगाधर थे। इसी तरह जवाहर की बहन कृष्णा ने भी एक जगह लिखा है कि उनके दादाजी मुगल सल्तनत बहादुरशाह जफर के समय में नगर कोतवाल थे। अब इतिहासकारो ने खोजबीन की तो पाया कि बहादुरशाह जफर के समय कोई भी हिन्दू इतनी महत्वपूर्ण ओहदे पर नहीं था। और खोजबीन करने पर पता चला कि उस वक्त के दो नायब कोतवाल हिन्दू थे जिनके नाम भाऊ सिंह और काशीनाथ थे जो कि लाहौरी गेट दिल्ली में तैनात थे। लेकिन किसी गंगाधर नाम के व्यक्ति का कोई रिकार्ड नहीं मिला है। नेहरू राजवंश की खोज में “मेहदी हुसैन की पुस्तक बहादुरशाह जफर और 1857 का गदर” में खोजबीन करने पर मालूम हुआ कि गंगाधर नाम तो बाद में अंग्रेजों के कहर के डर से बदला गया था, असली नाम तो गयासुद्दीन गाजी था। जब अंग्रेजों ने दिल्ली को लगभग जीत लिया था तब मुगलों और मुसलमानों के दोबारा विद्रोह के डर से उन्होंने दिल्ली के सारे हिन्दुओं और मुसलमानों को शहर से बाहर करके तम्बुओं में ठहरा दिया था। जैसे कि आज कश्मीरी पंडित रह रहे हैं। अंग्रेज वह गलती नहीं दोहराना चाहते थे जो गलती पृथ्वीराज चौहान ने मुसलमान बादशाहों को जीवित छोडकर की थी, इसलिये उन्होंने चुन-चुन कर मुसलमानों को मारना शुरु किया। लेकिन कुछ मुसलमान दिल्ली से भागकर पास के इलाकों मे चले गये थे। उसी समय यह परिवार भी आगरा की तरफ कूच कर गया। नेहरू ने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि आगरा जाते समय उनके दादा गंगाधर को अंग्रेजों ने रोककर पूछताछ की थी लेकिन तब गंगाधर ने उनसे कहा था कि वे मुसलमान नहीं हैं कश्मीरी पंडित हैं और अंग्रेजों ने उन्हें आगरा जाने दिया। यह धर उपनाम कश्मीरी पंडितों में आमतौर पाया जाता है और इसी का अपभ्रंश होते-होते और धर्मान्तरण होते-होते यह दर या डार हो गया जो कि कश्मीर के अविभाजित हिस्से में आमतौर पाया जाने वाला नाम है। लेकिन मोतीलाल ने नेहरू उपनाम चुना ताकि यह पूरी तरह से हिन्दू सा लगे। इतने पीछे से शुरुआत करने का मकसद सिर्फ यही है कि हमें पता चले कि खानदानी लोगों कि असलियत क्या होती है। 1968 में इंदिरा गांधी अफ़ग़ानिस्तान के दौरे पर व्यस्त कार्यक्रम के बावज़ूद बाबर की मज़ार पर गयीं थीं और कहा था कि "आज वे अपने पारिवारिक इतिहास से रूबरू हुई हैं"। वह अपने मुगल वंशी होने का तथ्य बता रहीं थीं। इन सब बातों का मतलब यही है कि राजीव और संजय गांधी दौनों इस्लाम धर्म के अनुयायी थे, नाम पर मत जाइये तथ्यों पर जाइये।
मोती लाल नेहरु का इतिहास एवं जवाहर लाल का जन्म :- मोतीलाल (भारत के प्रथम प्रधान मंत्री का पिता ) अधिक पढ़ा लिखा व्यक्ति नहीं था I कम उम्र में विवाह के बाद जीविका की खोज में वह इलाहबाद आ गया था उसके बसने का स्थान मीरगंज थाI जहाँ तुर्क व मुग़ल अपहृत हिन्दू महिलाओं को अपने मनोरंजन के लिए रखते थे I मोतीलाल अपनी दूसरी पत्नी तौसा के साथ मीरगंज में वेश्याओं के इलाके में रहा था I जो बाद में नाम बदल कर सरूप रानी रखा गया Iपहली पत्नी एक पुत्र के होने के बाद मर गयी थी I बाद में पुत्र की भी मृत्यु हो गई थीI उसने जीविका चलने के लिए वेश्यालय चलने का निश्चय किया I दिन के समय मोतीलाल कचहरी में मुख्तार का काम करता था I उसी उच्च न्यायलय में एक प्रसिद्द वकील मुबारक अली था जिसकी वकालत बहुत चलती थी I इशरत मंजिल के नाम से उसका एक मकान था Iकचहरी से मोतीलाल पैदल ही अपने घर लोटता थाI मुबारक अली भी शाम को रंगीन बनाने के लिए मीरगंज आता रहता था I एक दिन मीरगंज में ही मोतीलाल मुबारक अली से मिला और अपनी नई पत्नी तौसा अर्थात सरूप रानी के साथ रात बिताने का निमंत्रण दिया I सोदा पट गया और इस प्रकार मोतीलाल के सम्बन्ध मुबारक अली से बन गए दोनों ने इटावा की विधवा रानी को उसका राज्य वापस दिलाने के लिए जमकर लूटा I उस समय लगभग १० लाख की फीस ली और आधी आधी बाँट ली यही से मोतीलाल की किस्मत का सितारा बदल गया I
इसी बीच मोतीलाल की बीबी तौसा अर्थात सरूप रानी गर्भवती हो गयी मुबारक अली ने माना की बच्चा उसी की नाजायज औलाद है Iमोतीलाल ने मुबारक अली से होने वाली संतान के लिए इशरत महल में स्थान माँगा किन्तु मुबारक अली ने मना कर दिया लेकिन जच्चा-बच्चा का सारा खर्च मुबारक अली ने वहन किया I अंत में भारत का भावी प्रधान मंत्री मीरगंज के वेश्यालय में पैदा हुआ जैसे ही जवाहर प्रधान मंत्री बना वैसे ही तुरंत उसने मीरगंज का वह मकान तुडवा दिया ,और अफवाह फैला दी की वह आनद भवन (इशरत महल)में पैदा हुआ था जबकि उस समय आनंद भवन था ही नहीं I
मुबारक का सम्बन्ध बड़े प्रभुत्वशाली मुसलमानों से था I अवध के नवाब को जब पता चला की मुबारक का एक पुत्र मीरगंज के वेश्यालय में पल रहा है तो उसने मुबारक से उसे इशरत महल लाने को कहा I इस प्रकार नेहरू की परवरिश इशरत महल में हुई और इसी बात को नेहरू गर्व से कहता था की उसकी शिक्षा विदेशों में हुई, इस्लाम के तोर तरीके से उसका विकास हुआ और हिन्दू तो वह मात्र दुर्घटनावश ही था I
आनंद भवन नहीं इशरत मंजिल: लेखक के.एन.प्राण की पुस्तक “द नेहरू डायनेस्टी “ के अनुसार जवाहरलाल मोतीलाल नेहरू के पुत्र थे और मोतीलाल के पिता का नाम गंगाधर था I यह तो हम जानते ही हैं कि जवाहरलाल की एक पुत्री इन्दिरा प्रियदर्शिनी नेहरू थी तथा कमला नेहरू उनकी माता का नाम था। जिनकी मृत्यु स्विटजरलैण्ड में टीबी से हुई थी। कमला शुरु से ही इन्दिरा एवं फिरोज के विवाह के खिलाफ थीं पहले फिरोज गाँधी ना होकर फिरोज खान थे और कमला नेहरू के विरोध का असली कारण भी यही था । लेकिन यह फिरोज गाँधी कौन थे? फिरोज उस व्यापारी के बेटे थे जो इशरत मंजिल (आनन्द भवन) में घरेलू सामान और शराब पहुँचाने का काम करता था।
आनन्द भवन का असली नाम था इशरत मंजिल और उसके मालिक थे मुबारक अली। मोतीलाल नेहरू पहले इन्हीं मुबारक अली के यहाँ काम करते थे। सभी जानते हैं की राजीव गाँधी के नाना का नाम जवाहरलाल नेहरू था लेकिन प्रत्येक व्यक्ति के नाना के साथ दादा भी तो होते हैं। फिर राजीव गाँधी के दादाजी का नाम क्या था? किसी को नहीं बताया गया, क्योंकि राजीव गाँधी के दादा मुस्लिम थे जिस का नाम नवाब खान था । एक मुस्लिम व्यापारी जो आनन्द भवन में सामान सप्लाई करता था और जिसका मूल निवास गुजरात में जूनागढ था । नवाब खान ने एक पारसी महिला रतिमई घांदी से शादी की और उसे मुस्लिम बनाया। फिरोज खान इसी महिला की सन्तान थे और उनकी माँ का उपनाम घांदी था (गाँधी नहीं) घांदी नाम पारसियों में अक्सर पाया जाता था। विवाह से पहले फिरोज गाँधी ना होकर फिरोज खान थे और कमला नेहरू के विरोध का असली कारण भी यही था। हमें बताया जाता है कि फिरोज गाँधी पहले पारसी थे यह मात्र एक भ्रम पैदा किया गया है। इन्दिरा गाँधी अकेलेपन और अवसाद का शिकार थीं। शांति निकेतन में पढ़ते वक्त रविन्द्रनाथ टैगोर ने इन्द्र को अपने जर्मन टीचर के साथ हम विस्तर देख लिया था I रविन्द्रनाथ टैगोर ने उन्हें इस अनुचित व्यवहार के लिये शांति निकेतन से निकाल दिया था।
इंदिरा गांधी या मैमूना बेगम: इन्दिरा पहले से ही फिरोज खान को जानती एवं चाहती थी इंग्लैण्ड में पढाई के दोरान दोनों की दोस्ती प्यार में बदल गई इन्दिरा का धर्म परिवर्तन करवाकर मैमूना बेगम नाम रखा और लन्दन की एक मस्जिद में दोनों ने शादी रचा ली। नेहरू को पता चला तो वे बहुत लाल-पीले हुए लेकिन अब क्या किया जा सकता था। जब यह खबर मोहनदास करमचन्द गाँधी को मिली तो उन्होंने नेहरू को बुलाकर समझाया। राजनैतिक छवि की खातिर फिरोज को अपना दत्तक पुत्र बना कर अपना उप नाम गाँधी रखने के लिए राजी किया, यह एक आसान काम था कि एक शपथ पत्र के जरिये बजाय धर्म बदलने के सिर्फ नाम बदला जाये तो फिरोज खान घांदी से फिरोज गाँधी बन गये।विडम्बना यह है कि सत्य-सत्य का जाप करने वाले और सत्य के साथ मेरे प्रयोग नामक आत्मकथा लिखने वाले गाँधी ने इस बात का उल्लेख आज तक नहीं किया। खैर, उन दोनों फिरोज और इन्दिरा को भारत बुलाकर जनता के सामने दिखावे के लिये एक बार पुन: वैदिक रीति से उनका विवाह करवाया गया ताकि उनके खानदान की ऊँची नाक का भ्रम बना रहे। इस बारे में नेहरू के सेकेरेटरी एम.ओ.मथाई ने अपनी पुस्तक प्रेमेनिसेन्सेस ऑफ नेहरू एज (पृष्ठ 94 पैरा 2 (किताब अब भारत में प्रतिबंधित है) में लिखते हैं कि पता नहीं क्यों नेहरू ने सन 1942 में एक अन्तर्जातीय और अन्तर्धार्मिक विवाह को वैदिक रीतिरिवाजों से किये जाने को अनुमति दी जबकि उस समय यह अवैधानिक था कानूनी रूप से उसे सिविल मैरिज होना चाहिये था । यह तो एक स्थापित तथ्य है की राजीव गाँधी के जन्म के कुछ समय बाद इन्दिरा और फिरोज अलग हो गये थे हालाँकि तलाक नहीं हुआ था। फिरोज गाँधी अक्सर नेहरू परिवार से पैसे मांग कर परेशान करते थे और नेहरू की राजनैतिक गतिविधियों में हस्तक्षेप तक करने लगे थे। तंग आकर नेहरू ने फिरोज के तीन मूर्ति भवन मे आने-जाने पर प्रतिबन्ध लगा दिया था । मथाई लिखते हैं I फिरोज गाँधी की मृत्यु 8 सितंबर1960 को रहस्यमय हालात में हुई थी जबकी वह दूसरी शादी रचाने की योजना बना चुके थे। फिरोज गाँधी की मृत्यु से नेहरू और इन्दिरा को बड़ी राहत मिली थी।
संजय गांधी और इंदिरा: संजय गाँधी का असली नाम दरअसल संजीव गाँधी था अपने बडे भाई राजीव गाँधी से मिलता जुलता । लेकिन संजय नाम रखने की नौबत इसलिये आई क्योंकि उसे लन्दन पुलिस ने इंग्लैण्ड में कार चोरी के आरोप में पकड़ लिया था और उसका पासपोर्ट जब्त कर लिया था। ब्रिटेन में तत्कालीन भारतीय उच्चायुक्त कृष्ण मेनन ने तब मदद करके संजीव गाँधी का नाम बदलकर नया पासपोर्ट संजय गाँधी के नाम से बनवाया था, इन्हीं कृष्ण मेनन साहब को भ्रष्टाचार के एक मामले में नेहरू और इन्दिरा ने बचाया था। अफवाहें यह भी है कि इंदिरा गांधी के सम्बन्ध अपने सचिव युनुस खान से थे यह बात संजय गांधी को पता थी। अब संयोग पर संयोग देखिये संजय गाँधी का विवाह मेनका आनन्द से हुआ। कहा जाता है मेनका जो कि एक सिख लडक़ी हैI,संजय की रंगरेलियों की वजह से उनके पिता कर्नल आनन्द ने संजय को जान से मारने की धमकी दी थी इसी डर से संजय गाँधी ने मेनका आनंद से शादी की थी और मेनका का नाम बदलकर मानेका किया गया क्योंकि इन्दिरा गाँधी को यह नाम पसन्द नहीं था। मेनका कोई साधारण लडकी नहीं थीं क्योंकि उस जमाने में उन्होंने बॉम्बे डाईंग के लिये एक तौलिये में विज्ञापन किया था तथा सूर्या नामक पत्रिका की संपादक थी ।
सन्यासिन का सच:-नेहरु के सचिव एम.ओ.मथाई अपनी पुस्तक”प्रेमेनिसेन्सेस ऑफ नेहरू एज” के पृष्ठ 206 पर लिखते हैं-1948 में वाराणसी से एक सन्यासिन दिल्ली आयी जिसका काल्पनिक नाम श्रद्धा माता था। वह बहुत ही खूबसूरत,जवान तथा दिलकश महिला थी तथा संस्कृत की विद्वान थी I बहुत से सांसद उसके व्याख्यान सुनने को बेताब रहते थे। वह भारतीय पुरालेखों और सनातन संस्कृत की अच्छी जानकार थी। नेहरू के पुराने कर्मचारी एस.डी. उपाध्याय ने एक हिन्दी का पत्र नेहरू को सौंपा जिसके कारण नेहरू उस सन्यासिन को एक इंटरव्यू देने को राजी हुए। चूँकि देश तब आजाद हुआ ही था और काम बहुत था। नेहरू ने अधिकतर हर बार इंटरव्य़ू आधी रात के समय ही दिये। मथाई के शब्दों में एक रात मैने उसे पीएम हाऊस से निकलते देखा । एक बार नेहरू के लखनऊ दौरे के समय भी श्रध्दामाता उनके पुराने कर्मचारी एस.डी.उपाध्याय मिली से और एक पत्र देकर नेहरू से मिलने की इच्छा व्यक्त की उपाध्याय जी पत्र लेकर नेहरू के पास आये नेहरू ने भी उसे मिलने के लिए उत्तर दिया तथा श्रध्दामाता नेहरू से मिली लेकिन अचानक एक दिन श्रद्धामाता गायब हो गईं किसी के भी ढूँढे से नहीं मिलीं।
नवम्बर 1949 में बेंगलूर के एक कान्वेंट स्कूल से एक सुदर्शन शा नाम का आदमी पत्रों का एक बंडल लेकर आया। उसने कहा कि उत्तर भारत से एक युवती उस कान्वेंट में कुछ महीने पहले आयी थी और उसने एक बच्चे को जन्म दिया। उस युवती ने अपना नाम पता नहीं बताया और बच्चे के जन्म के तुरन्त बाद ही उस बच्चे को वहाँ छोडकर गायब हो गई । उसकी निजी वस्तुओं में हिन्दी में लिखे कुछ पत्र बरामद हुए जो प्रधानमन्त्री द्वारा लिखे गये हैं पत्रों का वह बंडल उस आदमी ने अधिकारियों के सुपुर्द कर दिया। मथाई लिखते हैं। मैने उस बच्चे और उसकी माँ की खोजबीन की काफी कोशिश की लेकिन कान्वेंट की मुख्य मिस्ट्रेस जो कि एक विदेशी महिला थी बहुत कठोर अनुशासन वाली थी और उसने इस मामले में एक शब्द भी किसी से नहीं कहा लेकिन मेरी इच्छा थी कि उस बच्चे का पालन-पोषण मैं करुँ और उसे रोमन कथोलिक संस्कारो में बड़ा करूँ चाहे उसे अपने पिता का नाम कभी भी मालूम ना हो लेकिन विधाता को यह मंजूर नहीं था।
सोनिया गाँधी का असली नाम एवं राजीव गाँधी से विवाह :- जैसा कि हमें मालूम है राजीव गाँधी ने, तूरिन (इटली) की महिला एडवीज एंटोनिया अलवीना माईनो उर्फ सानिया माईनो से विवाह करने के लिये अपना तथाकथित पारसी धर्म छोडकर कैथोलिक ईसाई धर्म अपना लिया था । अपने नाम राजीव गाँधी को बदल कर रोबेर्तो रखा और उनके दो बच्चे हुए जिसमें लडकी का नाम बियेन्का और लडके का रॉल रखा । बडी ही चालाकी से भारतीय जनता को बेवकूफ बनाने के लिये राजीव तथा सोनिया का पुनर्विवाह हिन्दू रीतिरिवाजों से करवाया गया और बच्चों का नाम बियेन्का से बदलकर प्रियंका और रॉल से बदलकर राहुल कर दिया गया I प्रधानमन्त्री बनने के बाद राजीव गाँधी ने लन्दन की एक प्रेस कॉन्फ्रेन्स में अपने-आप को पारसी की सन्तान बताया था, जबकि पारसियों से उनका कोई लेना-देना ही नहीं था, क्योंकि वे तो एक मुस्लिम की सन्तान थे जिसने नाम बदलकर पारसी उपनाम रख लिया था । हमें बताया गया है कि राजीव गाँधी केम्ब्रिज विश्वविद्यालय से स्नातक थे, यह अर्धसत्य है... ये तो सच है कि राजीव केम्ब्रिज यूनिवर्सिटी में मेकेनिकल इंजीनियरिंग के छात्र थे, लेकिन उन्हें वहाँ से बिना किसी डिग्री के निकलना पडा था, क्योंकि वे लगातार तीन साल फेल हो गये थे... लगभग यही हाल एडवीज एंटोनिया अलवीना माईनो उर्फ सोनिया गाँधी का था...हमें यही बताया गया है कि वे भी केम्ब्रिज यूनिवर्सिटी से स्नातक हैं... जबकि सच्चाई यह है कि सोनिया स्नातक हैं ही नहीं, वे केम्ब्रिज में पढने जरूर गईं थीं लेकिन केम्ब्रिज यूनिवर्सिटी में नहीं । सोनिया गाँधी केम्ब्रिज शहर के The Bell Education Trust में अंग्रेजी सीखने का एक कोर्स करने गई थी, ना कि केम्ब्रिज विश्वविद्यालय में (यह बात हाल ही में लोकसभा सचिवालय द्वारा माँगी गई जानकारी के तहत खुद सोनिया गाँधी ने मुहैया कराई है, उन्होंने बडे ही मासूम अन्दाज में कहा कि उन्होंने कब यह दावा किया था कि वे केम्ब्रिज से स्नातक हैं, अर्थात उनके चमचों ने यह बेपर की उडाई थी) । क्रूरता की हद तो यह थी कि राजीव का अन्तिम संस्कार हिन्दू रीतिरिवाजों के तहत किया गया, ना ही पारसी तरीके से ना ही मुस्लिम तरीके से । इसी नेहरू खानदान को भारत की जनता देश का भविष्य मानती है तथा नतमस्तक होकर पूजा भी करती है, एक इटालियन महिला जिसकी एकमात्र योग्यता यह है कि वह इस खानदान की बहू है आज देश की सबसे बडी पार्टी की कर्ताधर्ता है और रॉल को भारत का भावी प्रधान मंत्री तथा देश के 121 करोड़ लोगो का भविष्य बताया जा रहा है । मेनका गाँधी को विपक्षी पार्टियों द्वारा हाथों हाथ इसीलिये लिया था कि वे नेहरू खानदान की बहू हैं, इसलिये नहीं कि वे कोई समाजसेवी या प्राणियों पर दया रखने वाली हैं…और यदि कोई सोनिया माइनो की तुलना मदर टेरेसा या एनीबेसेण्ट से करता है तो उसकी बुद्धि पर तरस खाया जा सकता है I "गंगाधर" (गंगाधर नेहरू नहीं), यानी मोतीलाल नेहरू के पिता । नेहरू उपनाम बाद में मोतीलाल ने खुद लगा लिया था, जिसका शाब्दिक अर्थ था "नहर वाले", वरना तो उनका नाम होना चाहिये था "मोतीलाल धर", लेकिन जैसा कि इस खानदान की नाम बदलने की आदत में सुमार है उसी के मुताबिक उन्होंने यह किया । रॉबर्ट हार्डी एन्ड्रूज की किताब "ए लैम्प फ़ॉर इंडिया-द स्टोरी ऑफ़ मदाम पंडित" में उस तथाकथित गंगाधर का चित्र छपा है, जिसके अनुसार गंगाधर असल में एक सुन्नी मुसलमान था, जिसका असली नाम गयासुद्दीन गाजी था I

15 comments:

  1. दो कौड़ी के अंड भक्त तेरे मां बाप भी मुस्लिम है उसका इतिहास पता कर अब...... चूतिया

    ReplyDelete
    Replies
    1. Tum musalman itna chidte kyun ho sacchai se

      Delete
    2. Sachhai inhe hazam nahi hoti janab... inhe to bas jalna aur jalana atta hain

      Delete
    3. साले , सूअर की औलाद !
      तूं पता कर ले तेरी माँ का हलाला कितनी बार हुआ ।
      अब तू पता कर तेरा बाप कहाँ है ?

      Delete
    4. मजा आया चमचे के मिर्ची लग गई

      Delete
  2. लेखक द्वारा लिखी गई सब बातें ध्यान से समझने पर मालूम हुआ है कि जो कि गांधी खानदान है वो कि घुमता फिरता घांधी था चल कर अफगानिस्तान के थे ़़़

    ReplyDelete
  3. Ye gandhi pariwar nh froud pariwar hai sare naam badalne mai mahir hai
    Aam jindgi mai bh dekha jata hai normally musalman apne aapko hindu naam dekar rakhta hai

    ReplyDelete
  4. अगर शाक्ष्य हैं तो विकिपीडिया पर पोस्ट कर दो

    ReplyDelete
  5. देश को जवाहरलाल नेहरु के बारे में जानने का अधिकार है क्योंकि वह भारत के प्रधानमंत्री रहें हैं। क्योंकि जवाहरलाल नेहरु भारत में प्रधानमंत्री रहें हैं उनकी हरेक बात सार्वजनिक होनी चाहिए।

    ReplyDelete
  6. नेहरू गांधी सब गद्दार है मा भारती के साथ छल किया है इन्होंने

    ReplyDelete
  7. हो सकता है कि यह इतिहास की सच्चाई है जो कि कांग्रेस शाशनकाल में बदला गया था। किन्तु मुझे इसमें सच्ची बात समझ में आती है।

    ReplyDelete
  8. इस विषय पर बहुत जगह पढ़ा गंगाधर और गयासुद्दीन गाजी बड़ा झोलमाल है भाई कुछ ना कुछ गडबड जरूर है बिना आग के धुआं नहीं उठता हम ठहरे अनपढ़ कोई ना कोई इतिहासकार इस सच्चाई को जरूर उजागर करेगा। यदि ऐसा है तो ये हिन्दुस्तान की जनता के साथ किया गया सबसे बड़ा घोटाला है जनता के साथ इतना बड़ा धोखा।
    ज्यादा ना कहते हुए इतना ही कहूंगा
    जर, जोरू और जमीन
    ये है झगड़े की जड़ तीन

    ReplyDelete
  9. Mai ne to kabi nahi shuna hai ki nehru ji ke dada Muslim the.agr the to babri masjit me murti kiyo rakh wait...mujhe lagta hai ki kisi predesh me chunao hoga,,,tabi ,,agr Muslim hote to Pakistan Hindustan ka batwara kabi nahi hota...humare desh ke ab ke log beautiful ho Gaye hai..ki ..kuch nayeya krne ki jagaha sirf befajul ki history banane me lage hai....or prthviraaj chohan ne muglo se hi nahi chandelo se bhi lardai lardi,,,India ke jo mulya nivasi hai voh to daleet log hai.. Pandit ,chatriye , Muslim yeh to bhahar ke the...yeh kab se India ke hogaye...

    ReplyDelete
  10. Chacha nehru,us time jo KR Gaye ,,325 Gorment company s ko bana ke chale Gaye ,jb us time me itni facilities nahi thi...ab modi ji Kiya KR diye ,,BSNL Ko phele barbaad KR ke bech Diya ,agr aekha jaye BSNL Ki kul itni sampati hai ,agar bhecha jaaye to Mukesh ambani jaise 10 log ko khareed liye jaenge,,sabse bardi panoti modi ji hai is desh ke banks kanggal hai... railway bhi priwet krne pr hai..gareeb janta kese Safar kregi,,jab Tak hum apna ane Wala kal accha ni krenege tab Tak hum accha hestory kabi ni banay payenge...or Aurangzeb voh raja tha ,jo China me ghush ke hinduo ke liye mansarovar chhin liya tha....tabhi angrej muglo se darte the or uska Marne Ka intezar karte The.... Muglo ne kabhi bhi hinduon ka bura ni kiya nahin kiya,, agar aurangzeb ne mandir tode hain to masjid bhi thodi hain aur dargah abhi thodi... Kyunki use samay dharmon ki aard par galat kam bhi hote the,or chitrkut ka Hanuman ji ka mandir aurangzeb ne banvaya gaya hai,, agar aurangzeb Jabrai hinduon ko Muslim karta tha, to aise to to Ham sab hinduon ko Muslim ho jana chahie the aur abadi bhi muslimon ki jyada honi chahie thi India mein pr kiyo ni hui... Pahle samay mein main jab Ham paidai karte The to Sanskrit Chala karti thi class mein per ab AB ek ek bhi Sanskrit nahin padhaai jaati schoolon mein is government mein galti kiski hai is government ki ya US government ki. Kisi ko ramayan Sanskrit mein padhna nahin aati sirf Hindi mein padhte rehte hai log kiski galti hai is government ki use government ki, Ram setu ki file 5 sal se atki Hui hai , is government mein approval nahin hua galti kiski hai is government ki hai uska mat ki...

    ReplyDelete
  11. मेरे एक निकम्मे वकील दोस्त ने ऐसें झूठ फैलाने वाले शेकडो पेजेस के विरोध मे केसेस दाखिल किये है। उस्को बाकी कुछ काम नही है। यः पेज उसमें है या नही मुझे पता नाही

    ReplyDelete