Wednesday, April 10, 2013

सत्ता के हस्तांतरण की संधि (Transfer of Power Agreement) By V.P.Singh



सत्ता के हस्तांतरण की संधि ( Transfer of Power Agreement ) यानि भारत के आज़ादी की संधि । यह इतनी खतरनाक संधि है कि अगर आप अंग्रेजों द्वारा सन 1615 से लेकर 1857 तक किये गए सभी 565 संधियों या साजिस को जोड़ देंगे तो उससे भी ज्यादा खतरनाक संधि थी ।उस14 अगस्त 1947 की रात को जो कुछ हुआ वो आजादी नहीं बल्कि ट्रान्सफर ऑफ़ पॉवर का एग्रीमेंट पंडित नेहरु और लोर्ड माउन्ट बेटन के बीच में हुआ था ।Transfer of Power और Independence  यानी सत्ता का हस्तांतरण और स्वतंत्रता ये दो अलग- अलग चीजे है । सत्ता का हस्तांतरण कैसे होता है ? आप देखते होंगे की जब एक पार्टी की सरकार चुनाव में हार जाती है, तो दूसरी पार्टी की सरकार आती है । जब दूसरी पार्टी का प्रधानमन्त्री शपथ ग्रहण करता है, तो वह शपथ ग्रहण करने के तुरंत बाद एक रजिस्टर पर हस्ताक्षर करता है । जिस रजिस्टर पर आने वाला प्रधानमन्त्री हस्ताक्षर करता है उसी रजिस्टर को ट्रान्सफर ऑफ़ पॉवर की बुक कहते है । उस पर हस्ताक्षर के बाद पुराना प्रधानमन्त्री नए प्रधानमन्त्री को सत्ता सौंप देता है ,और पुराना प्रधानमंत्री निकल कर बाहर चला जाता है ।
यही नाटक 14 अगस्त 1947 की रात को 12 बजे हुआ था । जब लार्ड माउन्ट बेटन ने अपनी सत्ता पंडित नेहरु के हाथ में सौंपी थी और हमने कह दिया कि स्वराज्य आ गया है । कैसा स्वराज्य और काहे का स्वराज्य ? अंग्रेजो के लिए स्वराज्य का मतलब क्या था? और हमारे लिए स्वराज्य का मतलब क्या था? यह भी समझ लीजिये । अंग्रेज कहते थे की हमने स्वराज्य दिया,यानि अंग्रेजों ने अपना राज तुमको सौंपा है ताकि तुम लोग कुछ दिन इसे चला लो जब जरुरत पड़ेगी तो हम दुबारा आ जायेंगे । ये अंग्रेजो की Interpretation (व्याख्या) थी और हिन्दुस्तानी लोगों की व्याख्या थी कि हमने स्वराज्य ले लिया है । इस संधि के अनुसार ही भारत के दो टुकड़े किये गए भारत और पाकिस्तान नामक दो Dominion States बनाये गए । Dominion State का हिंदी में शाब्दिक अर्थ एक बड़े राज्य के अधीन एक छोटा राज्य होता है । भारत के सन्दर्भ में इसका असल अर्थ भी यही है ।अंग्रेजी में इसका अर्थ है "One of the self-governing nations in the British Commonwealth" और दूसरा "Dominance or power through legal authority” Dominion State और Independent Nation में जमीन आसमान का अंतर होता है ।मतलब सीधा है कि आज भी हम (भारत और पाकिस्तान) अंग्रेजों के अधीन ही हैं ।
दुःख तो ये होता है की उस समय के सत्ता के लालची लोगों ने बिना सोचे समझे या पुरे होशो हवास में इस संधि को मान लिया या जानबूझ कर ये सब स्वीकार कर लिया । ये जो तथाकथित आज़ादी आयी, इस का कानून अंग्रेजों की संसद में बनाया गया और इसका नाम Indian Independence Act रखा गया यानि भारत के स्वतंत्रता का कानून । अगर ऐसे धोखाधड़ी से इस देश की आजादी आई हो तो वो आजादी, आजादी है कहाँ ? इसीलिए महात्मा गाँधी 14 अगस्त 1947 की रात को दिल्ली में नहीं आये थे । वो नोआखाली में थे कांग्रेस के बड़े नेता गाँधी जी को बुलाने के लिए गए थे की बापू आप चलिए ।गाँधी जी ने मना कर दिया था क्योंकि? गाँधी जी कहते थे की मै मानता ही नहीं की कोई आजादी आ रही है ।गाँधी जी ने स्पष्ट कह दिया था की ये आजादी नहीं आ रही है सत्ता के हस्तांतरण का समझौता हो रहा है | गाँधी जी ने नोआखाली से प्रेस विज्ञप्ति जारी की थी ।उस प्रेस स्टेटमेंट के पहले ही वाक्य में गाँधी जी ने ये कहा कि
“मै हिन्दुस्तान के उन करोड़ों लोगों को ये सन्देश देना चाहता हु कि ये जो तथाकथित आजादी आ रही है, ये मै नहीं लाया । ये सत्ता के लालची लोग सत्ता के हस्तांतरण के चक्कर में फंस कर लाये है । मै मानता नहीं  की इस देश में कोई आजादी आई है”। भारत की राजनीति का सबसे बड़ा पुरोधा जिसने हिन्दुस्तान की आज़ादी की लड़ाई की नीव रखी हो वो आदमी 14 अगस्त1947 की रात को दिल्ली में मौजूद नहीं था । क्यों ? इसका अर्थ है कि गाँधी जी इससे सहमत नहीं थे । 14 अगस्त 1947 की रात को जो कुछ हुआ है वो आजादी नहीं आई .... ट्रान्सफर ऑफ़ पॉवर का एग्रीमेंट पंडित नेहरु और अंग्रेजी सरकार के बीच में लागू हुआ था ।
अब शर्तों की बात करता हूँ , सब का जिक्र करना तो संभव नहीं है लेकिन कुछ महत्वपूर्ण शर्तों का जिक्र जरूर करूंगा जिसे एक आम भारतीय जानता है और उनसे परिचित है ...............
इस संधि की शर्तों के मुताबिक हम आज भी अंग्रेजों के अधीन हैं । एक शब्द आप सब सुनते हैं Commonwealth Nations अभी कुछ दिन पहले दिल्ली में Commonwealth Game हुए थे आप को याद होगा और उसी में बहुत बड़ा घोटाला भी हुआ है । Commonwealth का मतलब समान सम्पति होता है । किस की समान सम्पति? ब्रिटेन की रानी की समान सम्पति आप जानते हैं ब्रिटेन की महारानी हमारे भारत की भी महारानी है और वो आज भी भारत की नागरिक है । हमारे जैसे 71 देशों की महारानी है । Commonwealth में 71 देश है और इन सभी 71 देशों में जाने के लिए ब्रिटेन की महारानी को वीजा की जरूरत नहीं होती है क्योंकि वो अपने ही देश में जा रही है लेकिन भारत के प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति को ब्रिटेन में जाने के लिए वीजा की जरूरत होती है क्योंकि वो दुसरे देश में जा रहे हैं ।
· मतलब इसका निकाले तो ये हुआ कि या तो ब्रिटेन की महारानी भारत की नागरिक है या फिर भारत आज भी ब्रिटेन का उपनिवेश है इसलिए ब्रिटेन की रानी को पासपोर्ट और वीजा की जरूरत नहीं होती है अगर दोनों बाते सही है तो 15 अगस्त 1947 को हमारी आज़ादी की बात कही जाती है वो झूठ है । Commonwealth Nations में हमारी जो एंट्री है वो एक Dominion State के रूप में है न कि Independent Nation के रूप में । इस देश में यह प्रोटोकोल है । जब भी नए राष्ट्रपति बनेंगे तो 21 तोपों की सलामी दी जाएगी उसके अलावा किसी को भी नहीं लेकिन ब्रिटेन की महारानी आती है तो उनको भी 21 तोपों की सलामी दी जाती है, इसका क्या मतलब है? पिछली बार ब्रिटेन की महारानी यहाँ आयी थी तो एक निमंत्रण पत्र छपा था और उस निमंत्रण पत्र में ऊपर जो नाम था वो ब्रिटेन की महारानी का था और उसके नीचे भारत के राष्ट्रपति का नाम था मतलब हमारे देश का राष्ट्रपति देश का प्रथम नागरिक नहीं है । यह  है राजनितिक गुलामी, हम कैसे माने कि हम एक स्वतंत्र देश में रह रहे हैं । एक शब्द आप सुनते होंगे High Commission ये अंग्रेजों का एक गुलाम देश दुसरे गुलाम देश के यहाँ खोलता है लेकिन इसे Embassy नहीं कहा जाता । एक मानसिक गुलामी का उदहारण भी देखिये ....... हमारे यहाँ के अख़बारों में आप देखते होंगे की कैसे- कैसे शब्द प्रयोग होते हैं - (ब्रिटेन की महारानी नहीं) महारानी एलिज़ाबेथ, (ब्रिटेन के प्रिन्स चार्ल्स नहीं) प्रिन्स चार्ल्स , (ब्रिटेन की प्रिंसेस नहीं) अब तो एक और प्रिन्स विलियम भी आ गए है ।

इस संधि की शर्तों के मुताबिक भारत का नाम INDIA रहेगा और सारी दुनिया में भारत का नाम इंडिया प्रचारित किया जायेगा और सारे सरकारी दस्तावेजों में इसे इंडिया के ही नाम से संबोधित किया जायेगा । हमारे और आपके लिए ये भारत है लेकिन दस्तावेजों में यह इंडिया है । संविधान के प्रस्तावना में ये लिखा गया है "India that is Bharat " जब कि होना ये चाहिए था "Bharat that was India" लेकिन दुर्भाग्य इस देश का कि यह भारत की जगह इंडिया हो गया । यह इसी संधि की शर्तों में से एक है । हम भारत के लोग जो इंडिया कहते हैं वो कहीं से भी भारत नहीं है । कुछ दिन पहले मैं एक लेख पढ़ रहा था उसमे उस व्यक्ति ने बताया था कि इंडिया का नाम बदल के भारत कर दिया जाये तो इस देश में आश्चर्यजनक बदलाव आ जायेगा और ये विश्व की बड़ी शक्ति बन जायेगा अब उस शख्स की बात में कितनी सच्चाई है मैं नहीं जानता, लेकिन भारत जब तक भारत था तब तक तो दुनिया में सबसे आगे था और ये जब से इंडिया हुआ है तब से और पीछे ही होता जा रहा है ।
शर्तों के मुताबिक भारत की संसद में 50 वर्षों तक यानि 1997 तक वन्दे मातरम नहीं गया जायेगा । सन 1997 में राजीव दीक्षित के कहने पर पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ने इस मुद्दे को संसद में उठाया तब जाकर पहली बार इस तथाकथित आजाद देश की संसद में वन्देमातरम गाया गया । 50 वर्षों तक नहीं गाया गया क्योंकि ये भी इसी संधि की शर्तों में से एक है । वन्देमातरम को लेकर मुसलमानों में जो भ्रम फैलाया गया वो अंग्रेजों के दिशानिर्देश पर ही हुआ था ।इस गीत में कुछ भी ऐसा आपत्तिजनक नहीं है जो मुसलमानों के दिल को ठेस पहुचाये । आपत्तिजनक तो जन,गन,मन में है जिसमे एक शख्स को भारत भाग्यविधाता यानि भारत के हर व्यक्ति का भगवान बताया गया है या कहें भगवान से भी बढ़कर ।
· इस संधि की शर्तों के अनुसार सुभाष चन्द्र बोस को जिन्दा या मुर्दा अंग्रेजों के हवाले करना था ।यही वजह रही की सुभाष चन्द्र बोस अपने देश के लिए लापता रहे और कहाँ गए ये आज तक किसी को मालूम नहीं है । समय- समय पर कई अफवाहें फैली लेकिन सुभाष चन्द्र बोस का पता नहीं लगा और न ही किसी ने उनको ढूँढने में रूचि दिखाई ।मतलब भारत का एक महान स्वतंत्रता सेनानी अपने ही देश के लिए बेगाना हो गया । आप सब लोगों को मालूम है सुभाष चन्द्र बोस ने 1942 में आजाद हिंद फौज बनाई थी लेकिन महत्वपूर्ण बात यह है उसी समय द्वितीय विश्वयुद्ध चल रहा था और सुभाष चन्द्र बोस ने इस काम में जर्मन और जापानी लोगों से मदद ली थी जो कि अंग्रेजो के दुश्मन थे और इस आजाद हिंद फौज ने अंग्रेजों को सबसे ज्यादा नुकसान पहुँचाया था । जर्मनी के हिटलर और इंग्लैंड के एटली और चर्चिल के व्यक्तिगत विवादों की वजह से ये द्वितीय विश्वयुद्ध हुआ था । दोनों देश एक दुसरे के कट्टर दुश्मन थे । जर्मन की मदद से सुभाष चन्द्र बोस ने अंग्रेजों को नाकों चने चबवा दिए थे । एक तो अंग्रेज उधर विश्वयुद्ध में लगे थे दूसरी तरफ उन्हें भारत में भी सुभाष चन्द्र बोस की वजह से परेशानियों का सामना करना पड़ रहा था । इसलिए वे सुभाष चन्द्र बोस के कट्टर दुश्मन थे ।
- इस संधि की शर्तों के अनुसार भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद, अशफाकुल्लाह, रामप्रसाद विस्मिल जैसे लोग आतंकवादी थे और यही हमारे syllabus में बहुत दिनों तक पढाया जाता था । अभी कुछ महीने पहले तक CBSE बोर्ड  की किताबों में भगत सिंह को आतंकवादी ही बताया जा रहा था,भला हो कुछ लोगों का जिन्होंने अदालत में एक केस किया और अदालत ने इसे हटाने का आदेश दिया । सन 1940 में इंडियन एजुकेशन एक्ट पर चर्चा करते समय लोर्ड मैकोले ने कहा था कि "हिंदी भाषा भारत की रीढ़ की हड्डी है और हमें इसे तोडना है"। भारत दुनिया में एक अनोखा देश है जिसकी कोई राष्ट्र भाषा नहीं है क्योंकि इस संधि की शर्तों के मुताबिक हिंदी को राष्ट्रभाषा का स्थान नहीं दिया जायेगा और आधिकारिक भाषा अंग्रेजी ही रखी जाएगी ।
- आप भारत के सभी बड़े रेलवे स्टेशन पर एक किताब की दुकान देखते होंगे "व्हीलर बुक स्टोर" वो इसी संधि की शर्तों के अनुसार है । ये व्हीलर कौन था ? ये व्हीलर सबसे बड़ा अत्याचारी था । इसने इस देश की हजारों माँ, बहन और बेटियों के साथ बलात्कार किया था । इसने किसानों पर सबसे ज्यादा गोलियां चलवाई थी । सन 1857 की क्रांति के बाद कानपुर के नजदीक बिठुर में व्हीलर और नील नामक दो अंग्रजों ने यहाँ के सभी 24 हजार लोगों को जान से मरवा दिया था चाहे वो गोदी का बच्चा हो या मरणासन्न हालत में पड़ा कोई बुड्ढा । इस व्हीलर के नाम से इंग्लैंड में एक एजेंसी शुरू हुई थी और वही भारत में आ गयी । भारत आजाद हुआ तो ये ख़त्म होना चाहिए था, नहीं तो कम से कम नाम ही बदल देते । लेकिन वो नहीं बदला गया क्योंकि ये इस संधि में है |

· इस संधि की शर्तों के अनुसार अंग्रेज देश छोड़ के चले जायेगे लेकिन इस देश में कोई भी कानून चाहे वो किसी क्षेत्र में हो नहीं बदला जायेगा । इसलिए आज भी इस देश में 34735 कानून वैसे के वैसे चल रहे हैं जैसे अंग्रेजों के समय चलता था (Indian Police Act, Indian Civil Services Act (अब इसका नाम है Indian Civil Administrative Act), Indian Penal Code (Ireland में भी IPC चलता है और Ireland में जहाँ "I" का मतलब Irish है वही भारत के IPC में "I" का मतलब Indian है बाकि सब के सब कंटेंट एक ही है, कौमा और फुल स्टॉप का भी अंतर नहीं है) Indian Citizenship Act, Indian Advocates Act, Indian Education Act, Land Acquisition Act, Criminal Procedure Act, Indian Evidence Act, Indian Income Tax Act, Indian Forest Act, Indian Agricultural Price Commission Act सब के सब आज भी वैसे ही चल रहे हैं बिना फुल स्टॉप और कौमा बदले हुए |
· इस संधि के अनुसार अंग्रेजों द्वारा बनाये गए भवन जैसे के तैसे रखे जायेंगे जैसे शहर का नाम, सड़क का नाम सब के सब वैसे ही रखे जायेंगे । आज देश का संसद भवन, सुप्रीम कोर्ट, हाई कोर्ट, राष्ट्रपति भवन कितने नाम गिनाऊँ सब के सब वैसे ही खड़े हैं और हमें मुंह चिढ़ा रहे हैं । लार्ड डलहौजी के नाम पर डलहौजी शहर है ,वास्को डी गामा नामक शहर है (हाला कि वो पुर्तगाली था ) रिपन रोड, कर्जन रोड, मेयो रोड, बेंटिक रोड, फ्रेजर रोड, बेली रोड, ऐसे हजारों भवन और रोड हैं, सब के सब वैसे के वैसे ही हैं । आप भी अपने शहर में देखिएगा वहां भी कोई न कोई भवन, सड़क उन लोगों के नाम से होंगे । गुजरात के सूरत शहर में एक बिल्डिंग है उसका नाम कूपर विला है । अंग्रेजों को जब जहाँगीर ने व्यापार का लाइसेंस दिया था तो सबसे पहले वो सूरत में आये थे और सूरत में उन्होंने इस बिल्डिंग का निर्माण किया था । गुलामी का पहला अध्याय आज तक सूरत शहर में खड़ा है ।

हमारे यहाँ शिक्षा व्यवस्था अंग्रेजों की है क्योंकि ये इस संधि में लिखा है और मजे  की बात ये है कि अंग्रेजों ने हमारे यहाँ एक अलग शिक्षा व्यवस्था दी और अपने यहाँ अलग किस्म की शिक्षा व्यवस्था रखी है । हमारे यहाँ शिक्षा में डिग्री का महत्व है और उनके यहाँ ठीक उल्टा है । मेरे पास ज्ञान है और मैं कोई अविष्कार करता हूँ तो भारत में पूछा जायेगा की तुम्हारे पास कौन सी डिग्री है ? अगर नहीं है तो मेरे अविष्कार और ज्ञान का कोई मतलब नहीं है । जबकि उनके यहाँ ऐसा बिलकुल नहीं है आप अगर कोई अविष्कार करते हैं और आपके पास ज्ञान है लेकिन कोई डिग्री नहीं हैं तो कोई बात नहीं आपको प्रोत्साहित किया जायेगा । नोबेल पुरस्कार पाने के लिए आपको डिग्री की जरूरत नहीं होती है । हमारे शिक्षा तंत्र को अंग्रेजों ने डिग्री में बांध दिया था जो आज भी वैसे के वैसा ही चल रहा है । ये जो 33 नंबर का पास मार्क्स आप देखते हैं वो उसी शिक्षा व्यवस्था की देन है, मतलब ये है कि आप भले ही 67 नंबर से फेल है लेकिन 33 नंबर लाये है तो पास हैं, ऐसा शिक्षा तंत्र से सिर्फ गधे ही पैदा हो सकते हैं और यही अंग्रेज चाहते थे  । आप देखते होंगे की हमारे देश में एक विषय चलता है जिसका नाम है Anthropology जानते है इसमें क्या पढाया जाता है ? इसमें गुलाम लोगों की मानसिक अवस्था के बारे में पढाया जाता है । यह अंग्रेजों ने ही इस देश में शुरू किया था और आज भी यह इस देश के विश्वविद्यालयों में पढाया जाता है और यहाँ तक की सिविल सर्विस की परीक्षा में भी ये चलता है ।
- इस संधि की शर्तों के हिसाब से हमारे देश में आयुर्वेद को कोई सहयोग नहीं दिया जायेगा मतलब हमारे देश की विद्या हमारे ही देश में ख़त्म हो जाये ये साजिस की गयी । आयुर्वेद को अंग्रेजों ने नष्ट करने का भरसक प्रयास किया था लेकिन ऐसा कर नहीं पाए । दुनिया में जितने भी पैथी हैं उनमे ये होता है पहले आप बीमार हों तो आपका इलाज होगा लेकिन आयुर्वेद एक ऐसी विद्या है जिसमे कहा जाता है की आप बीमार ही मत पड़िए । आपको मैं एक सच्ची घटना बताता हूँ - अमेरिका का पहला राष्ट्रपति जोर्ज वाशिंगटन दिसम्बर 1799 में बीमार पड़ा और जब उसका बुखार ठीक नहीं हो रहा था तो उसके डाक्टरों ने कहा की इनके शरीर का खून गन्दा हो गया है ।  इसको निकाला जायेगा तो ये बुखार ठीक होगा और उसके दोनों हाथों की नसें डाक्टरों ने काट दी और खून निकल जाने की वजह से जोर्ज वाशिंगटन मर गया । यह घटना 1799 की है और 1780 में एक अंग्रेज भारत आया और यहाँ से प्लास्टिक सर्जरी सीख कर गया था । कहने का मतलब यह  है कि उस समय हमारे देश का चिकित्सा विज्ञान कितना विकसित था । ये सब आयुर्वेद की वजह से था और उसी आयुर्वेद को आज सरकार ने हाशिये पर पंहुचा दिया है ।
· इस संधि के हिसाब से हमारे देश में गुरुकुल संस्कृति को कोई प्रोत्साहन नहीं दिया जायेगा । हमारे देश की समृद्धि और यहाँ मौजूद उच्च तकनीक की वजह ये गुरुकुल ही थे । अंग्रेजों ने सबसे पहले इस देश की गुरुकुल परंपरा को ही तोडा था ।


                                                                                             V.P.Singh

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