Friday, December 23, 2011

एक सत्य नेहरु खानदान मुस्लिम: गयासुद्दीन गाजी के वंशज :V.P.Singh

रॉबर्ट हार्डी एन्ड्रूज द्वारा लिखी गई पुस्तक "ए लैम्प फार इंडिया- द स्टोरी ऑफ मदाम पंडित।" के अनुसार गंगाधर असल में एक सुन्नी मुसलमान थे जिनका असली नाम गयासुद्दीन गाजी था।
इसकी पुष्टि के लिए नेहरू ने जो आत्मकथा लिखी है, उसको पढऩा जरूरी है। इसमें एक जगह लिखा है उनके दादा मोतीलाल के पिता गंगाधर थे। इसी तरह जवाहर की बहन कृष्णा ने भी एक जगह लिखा है कि उनके दादाजी मुगल सल्तनत बहादुरशाह जफर के समय में नगर कोतवाल थे। अब इतिहासकारो ने खोजबीन की तो पाया कि बहादुरशाह जफर के समय कोई भी हिन्दू इतनी महत्वपूर्ण ओहदे पर नहीं था। और खोजबीन करने पर पता चला कि उस वक्त के दो नायब कोतवाल हिन्दू थे जिनके नाम भाऊ सिंह और काशीनाथ थे जो कि लाहौरी गेट दिल्ली में तैनात थे। लेकिन किसी गंगाधर नाम के व्यक्ति का कोई रिकार्ड नहीं मिला है। नेहरू राजवंश की खोज में “मेहदी हुसैन की पुस्तक बहादुरशाह जफर और 1857 का गदर” में खोजबीन करने पर मालूम हुआ कि गंगाधर नाम तो बाद में अंग्रेजों के कहर के डर से बदला गया था, असली नाम तो गयासुद्दीन गाजी था। जब अंग्रेजों ने दिल्ली को लगभग जीत लिया था तब मुगलों और मुसलमानों के दोबारा विद्रोह के डर से उन्होंने दिल्ली के सारे हिन्दुओं और मुसलमानों को शहर से बाहर करके तम्बुओं में ठहरा दिया था। जैसे कि आज कश्मीरी पंडित रह रहे हैं। अंग्रेज वह गलती नहीं दोहराना चाहते थे जो गलती पृथ्वीराज चौहान ने मुसलमान बादशाहों को जीवित छोडकर की थी, इसलिये उन्होंने चुन-चुन कर मुसलमानों को मारना शुरु किया। लेकिन कुछ मुसलमान दिल्ली से भागकर पास के इलाकों मे चले गये थे। उसी समय यह परिवार भी आगरा की तरफ कूच कर गया। नेहरू ने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि आगरा जाते समय उनके दादा गंगाधर को अंग्रेजों ने रोककर पूछताछ की थी लेकिन तब गंगाधर ने उनसे कहा था कि वे मुसलमान नहीं हैं कश्मीरी पंडित हैं और अंग्रेजों ने उन्हें आगरा जाने दिया। यह धर उपनाम कश्मीरी पंडितों में आमतौर पाया जाता है और इसी का अपभ्रंश होते-होते और धर्मान्तरण होते-होते यह दर या डार हो गया जो कि कश्मीर के अविभाजित हिस्से में आमतौर पाया जाने वाला नाम है। लेकिन मोतीलाल ने नेहरू उपनाम चुना ताकि यह पूरी तरह से हिन्दू सा लगे। इतने पीछे से शुरुआत करने का मकसद सिर्फ यही है कि हमें पता चले कि खानदानी लोगों कि असलियत क्या होती है। 1968 में इंदिरा गांधी अफ़ग़ानिस्तान के दौरे पर व्यस्त कार्यक्रम के बावज़ूद बाबर की मज़ार पर गयीं थीं और कहा था कि "आज वे अपने पारिवारिक इतिहास से रूबरू हुई हैं"। वह अपने मुगल वंशी होने का तथ्य बता रहीं थीं। इन सब बातों का मतलब यही है कि राजीव और संजय गांधी दौनों इस्लाम धर्म के अनुयायी थे, नाम पर मत जाइये तथ्यों पर जाइये।
मोती लाल नेहरु का इतिहास एवं जवाहर लाल का जन्म :- मोतीलाल (भारत के प्रथम प्रधान मंत्री का पिता ) अधिक पढ़ा लिखा व्यक्ति नहीं था I कम उम्र में विवाह के बाद जीविका की खोज में वह इलाहबाद आ गया था उसके बसने का स्थान मीरगंज थाI जहाँ तुर्क व मुग़ल अपहृत हिन्दू महिलाओं को अपने मनोरंजन के लिए रखते थे I मोतीलाल अपनी दूसरी पत्नी तौसा के साथ मीरगंज में वेश्याओं के इलाके में रहा था I जो बाद में नाम बदल कर सरूप रानी रखा गया Iपहली पत्नी एक पुत्र के होने के बाद मर गयी थी I बाद में पुत्र की भी मृत्यु हो गई थीI उसने जीविका चलने के लिए वेश्यालय चलने का निश्चय किया I दिन के समय मोतीलाल कचहरी में मुख्तार का काम करता था I उसी उच्च न्यायलय में एक प्रसिद्द वकील मुबारक अली था जिसकी वकालत बहुत चलती थी I इशरत मंजिल के नाम से उसका एक मकान था Iकचहरी से मोतीलाल पैदल ही अपने घर लोटता थाI मुबारक अली भी शाम को रंगीन बनाने के लिए मीरगंज आता रहता था I एक दिन मीरगंज में ही मोतीलाल मुबारक अली से मिला और अपनी नई पत्नी तौसा अर्थात सरूप रानी के साथ रात बिताने का निमंत्रण दिया I सोदा पट गया और इस प्रकार मोतीलाल के सम्बन्ध मुबारक अली से बन गए दोनों ने इटावा की विधवा रानी को उसका राज्य वापस दिलाने के लिए जमकर लूटा I उस समय लगभग १० लाख की फीस ली और आधी आधी बाँट ली यही से मोतीलाल की किस्मत का सितारा बदल गया I
इसी बीच मोतीलाल की बीबी तौसा अर्थात सरूप रानी गर्भवती हो गयी मुबारक अली ने माना की बच्चा उसी की नाजायज औलाद है Iमोतीलाल ने मुबारक अली से होने वाली संतान के लिए इशरत महल में स्थान माँगा किन्तु मुबारक अली ने मना कर दिया लेकिन जच्चा-बच्चा का सारा खर्च मुबारक अली ने वहन किया I अंत में भारत का भावी प्रधान मंत्री मीरगंज के वेश्यालय में पैदा हुआ जैसे ही जवाहर प्रधान मंत्री बना वैसे ही तुरंत उसने मीरगंज का वह मकान तुडवा दिया ,और अफवाह फैला दी की वह आनद भवन (इशरत महल)में पैदा हुआ था जबकि उस समय आनंद भवन था ही नहीं I
मुबारक का सम्बन्ध बड़े प्रभुत्वशाली मुसलमानों से था I अवध के नवाब को जब पता चला की मुबारक का एक पुत्र मीरगंज के वेश्यालय में पल रहा है तो उसने मुबारक से उसे इशरत महल लाने को कहा I इस प्रकार नेहरू की परवरिश इशरत महल में हुई और इसी बात को नेहरू गर्व से कहता था की उसकी शिक्षा विदेशों में हुई, इस्लाम के तोर तरीके से उसका विकास हुआ और हिन्दू तो वह मात्र दुर्घटनावश ही था I
आनंद भवन नहीं इशरत मंजिल: लेखक के.एन.प्राण की पुस्तक “द नेहरू डायनेस्टी “ के अनुसार जवाहरलाल मोतीलाल नेहरू के पुत्र थे और मोतीलाल के पिता का नाम गंगाधर था I यह तो हम जानते ही हैं कि जवाहरलाल की एक पुत्री इन्दिरा प्रियदर्शिनी नेहरू थी तथा कमला नेहरू उनकी माता का नाम था। जिनकी मृत्यु स्विटजरलैण्ड में टीबी से हुई थी। कमला शुरु से ही इन्दिरा एवं फिरोज के विवाह के खिलाफ थीं पहले फिरोज गाँधी ना होकर फिरोज खान थे और कमला नेहरू के विरोध का असली कारण भी यही था । लेकिन यह फिरोज गाँधी कौन थे? फिरोज उस व्यापारी के बेटे थे जो इशरत मंजिल (आनन्द भवन) में घरेलू सामान और शराब पहुँचाने का काम करता था।
आनन्द भवन का असली नाम था इशरत मंजिल और उसके मालिक थे मुबारक अली। मोतीलाल नेहरू पहले इन्हीं मुबारक अली के यहाँ काम करते थे। सभी जानते हैं की राजीव गाँधी के नाना का नाम जवाहरलाल नेहरू था लेकिन प्रत्येक व्यक्ति के नाना के साथ दादा भी तो होते हैं। फिर राजीव गाँधी के दादाजी का नाम क्या था? किसी को नहीं बताया गया, क्योंकि राजीव गाँधी के दादा मुस्लिम थे जिस का नाम नवाब खान था । एक मुस्लिम व्यापारी जो आनन्द भवन में सामान सप्लाई करता था और जिसका मूल निवास गुजरात में जूनागढ था । नवाब खान ने एक पारसी महिला रतिमई घांदी से शादी की और उसे मुस्लिम बनाया। फिरोज खान इसी महिला की सन्तान थे और उनकी माँ का उपनाम घांदी था (गाँधी नहीं) घांदी नाम पारसियों में अक्सर पाया जाता था। विवाह से पहले फिरोज गाँधी ना होकर फिरोज खान थे और कमला नेहरू के विरोध का असली कारण भी यही था। हमें बताया जाता है कि फिरोज गाँधी पहले पारसी थे यह मात्र एक भ्रम पैदा किया गया है। इन्दिरा गाँधी अकेलेपन और अवसाद का शिकार थीं। शांति निकेतन में पढ़ते वक्त रविन्द्रनाथ टैगोर ने इन्द्र को अपने जर्मन टीचर के साथ हम विस्तर देख लिया था I रविन्द्रनाथ टैगोर ने उन्हें इस अनुचित व्यवहार के लिये शांति निकेतन से निकाल दिया था।
इंदिरा गांधी या मैमूना बेगम: इन्दिरा पहले से ही फिरोज खान को जानती एवं चाहती थी इंग्लैण्ड में पढाई के दोरान दोनों की दोस्ती प्यार में बदल गई इन्दिरा का धर्म परिवर्तन करवाकर मैमूना बेगम नाम रखा और लन्दन की एक मस्जिद में दोनों ने शादी रचा ली। नेहरू को पता चला तो वे बहुत लाल-पीले हुए लेकिन अब क्या किया जा सकता था। जब यह खबर मोहनदास करमचन्द गाँधी को मिली तो उन्होंने नेहरू को बुलाकर समझाया। राजनैतिक छवि की खातिर फिरोज को अपना दत्तक पुत्र बना कर अपना उप नाम गाँधी रखने के लिए राजी किया, यह एक आसान काम था कि एक शपथ पत्र के जरिये बजाय धर्म बदलने के सिर्फ नाम बदला जाये तो फिरोज खान घांदी से फिरोज गाँधी बन गये।विडम्बना यह है कि सत्य-सत्य का जाप करने वाले और सत्य के साथ मेरे प्रयोग नामक आत्मकथा लिखने वाले गाँधी ने इस बात का उल्लेख आज तक नहीं किया। खैर, उन दोनों फिरोज और इन्दिरा को भारत बुलाकर जनता के सामने दिखावे के लिये एक बार पुन: वैदिक रीति से उनका विवाह करवाया गया ताकि उनके खानदान की ऊँची नाक का भ्रम बना रहे। इस बारे में नेहरू के सेकेरेटरी एम.ओ.मथाई ने अपनी पुस्तक प्रेमेनिसेन्सेस ऑफ नेहरू एज (पृष्ठ 94 पैरा 2 (किताब अब भारत में प्रतिबंधित है) में लिखते हैं कि पता नहीं क्यों नेहरू ने सन 1942 में एक अन्तर्जातीय और अन्तर्धार्मिक विवाह को वैदिक रीतिरिवाजों से किये जाने को अनुमति दी जबकि उस समय यह अवैधानिक था कानूनी रूप से उसे सिविल मैरिज होना चाहिये था । यह तो एक स्थापित तथ्य है की राजीव गाँधी के जन्म के कुछ समय बाद इन्दिरा और फिरोज अलग हो गये थे हालाँकि तलाक नहीं हुआ था। फिरोज गाँधी अक्सर नेहरू परिवार से पैसे मांग कर परेशान करते थे और नेहरू की राजनैतिक गतिविधियों में हस्तक्षेप तक करने लगे थे। तंग आकर नेहरू ने फिरोज के तीन मूर्ति भवन मे आने-जाने पर प्रतिबन्ध लगा दिया था । मथाई लिखते हैं I फिरोज गाँधी की मृत्यु 8 सितंबर1960 को रहस्यमय हालात में हुई थी जबकी वह दूसरी शादी रचाने की योजना बना चुके थे। फिरोज गाँधी की मृत्यु से नेहरू और इन्दिरा को बड़ी राहत मिली थी।
संजय गांधी और इंदिरा: संजय गाँधी का असली नाम दरअसल संजीव गाँधी था अपने बडे भाई राजीव गाँधी से मिलता जुलता । लेकिन संजय नाम रखने की नौबत इसलिये आई क्योंकि उसे लन्दन पुलिस ने इंग्लैण्ड में कार चोरी के आरोप में पकड़ लिया था और उसका पासपोर्ट जब्त कर लिया था। ब्रिटेन में तत्कालीन भारतीय उच्चायुक्त कृष्ण मेनन ने तब मदद करके संजीव गाँधी का नाम बदलकर नया पासपोर्ट संजय गाँधी के नाम से बनवाया था, इन्हीं कृष्ण मेनन साहब को भ्रष्टाचार के एक मामले में नेहरू और इन्दिरा ने बचाया था। अफवाहें यह भी है कि इंदिरा गांधी के सम्बन्ध अपने सचिव युनुस खान से थे यह बात संजय गांधी को पता थी। अब संयोग पर संयोग देखिये संजय गाँधी का विवाह मेनका आनन्द से हुआ। कहा जाता है मेनका जो कि एक सिख लडक़ी हैI,संजय की रंगरेलियों की वजह से उनके पिता कर्नल आनन्द ने संजय को जान से मारने की धमकी दी थी इसी डर से संजय गाँधी ने मेनका आनंद से शादी की थी और मेनका का नाम बदलकर मानेका किया गया क्योंकि इन्दिरा गाँधी को यह नाम पसन्द नहीं था। मेनका कोई साधारण लडकी नहीं थीं क्योंकि उस जमाने में उन्होंने बॉम्बे डाईंग के लिये एक तौलिये में विज्ञापन किया था तथा सूर्या नामक पत्रिका की संपादक थी ।
सन्यासिन का सच:-नेहरु के सचिव एम.ओ.मथाई अपनी पुस्तक”प्रेमेनिसेन्सेस ऑफ नेहरू एज” के पृष्ठ 206 पर लिखते हैं-1948 में वाराणसी से एक सन्यासिन दिल्ली आयी जिसका काल्पनिक नाम श्रद्धा माता था। वह बहुत ही खूबसूरत,जवान तथा दिलकश महिला थी तथा संस्कृत की विद्वान थी I बहुत से सांसद उसके व्याख्यान सुनने को बेताब रहते थे। वह भारतीय पुरालेखों और सनातन संस्कृत की अच्छी जानकार थी। नेहरू के पुराने कर्मचारी एस.डी. उपाध्याय ने एक हिन्दी का पत्र नेहरू को सौंपा जिसके कारण नेहरू उस सन्यासिन को एक इंटरव्यू देने को राजी हुए। चूँकि देश तब आजाद हुआ ही था और काम बहुत था। नेहरू ने अधिकतर हर बार इंटरव्य़ू आधी रात के समय ही दिये। मथाई के शब्दों में एक रात मैने उसे पीएम हाऊस से निकलते देखा । एक बार नेहरू के लखनऊ दौरे के समय भी श्रध्दामाता उनके पुराने कर्मचारी एस.डी.उपाध्याय मिली से और एक पत्र देकर नेहरू से मिलने की इच्छा व्यक्त की उपाध्याय जी पत्र लेकर नेहरू के पास आये नेहरू ने भी उसे मिलने के लिए उत्तर दिया तथा श्रध्दामाता नेहरू से मिली लेकिन अचानक एक दिन श्रद्धामाता गायब हो गईं किसी के भी ढूँढे से नहीं मिलीं।
नवम्बर 1949 में बेंगलूर के एक कान्वेंट स्कूल से एक सुदर्शन शा नाम का आदमी पत्रों का एक बंडल लेकर आया। उसने कहा कि उत्तर भारत से एक युवती उस कान्वेंट में कुछ महीने पहले आयी थी और उसने एक बच्चे को जन्म दिया। उस युवती ने अपना नाम पता नहीं बताया और बच्चे के जन्म के तुरन्त बाद ही उस बच्चे को वहाँ छोडकर गायब हो गई । उसकी निजी वस्तुओं में हिन्दी में लिखे कुछ पत्र बरामद हुए जो प्रधानमन्त्री द्वारा लिखे गये हैं पत्रों का वह बंडल उस आदमी ने अधिकारियों के सुपुर्द कर दिया। मथाई लिखते हैं। मैने उस बच्चे और उसकी माँ की खोजबीन की काफी कोशिश की लेकिन कान्वेंट की मुख्य मिस्ट्रेस जो कि एक विदेशी महिला थी बहुत कठोर अनुशासन वाली थी और उसने इस मामले में एक शब्द भी किसी से नहीं कहा लेकिन मेरी इच्छा थी कि उस बच्चे का पालन-पोषण मैं करुँ और उसे रोमन कथोलिक संस्कारो में बड़ा करूँ चाहे उसे अपने पिता का नाम कभी भी मालूम ना हो लेकिन विधाता को यह मंजूर नहीं था।
सोनिया गाँधी का असली नाम एवं राजीव गाँधी से विवाह :- जैसा कि हमें मालूम है राजीव गाँधी ने, तूरिन (इटली) की महिला एडवीज एंटोनिया अलवीना माईनो उर्फ सानिया माईनो से विवाह करने के लिये अपना तथाकथित पारसी धर्म छोडकर कैथोलिक ईसाई धर्म अपना लिया था । अपने नाम राजीव गाँधी को बदल कर रोबेर्तो रखा और उनके दो बच्चे हुए जिसमें लडकी का नाम बियेन्का और लडके का रॉल रखा । बडी ही चालाकी से भारतीय जनता को बेवकूफ बनाने के लिये राजीव तथा सोनिया का पुनर्विवाह हिन्दू रीतिरिवाजों से करवाया गया और बच्चों का नाम बियेन्का से बदलकर प्रियंका और रॉल से बदलकर राहुल कर दिया गया I प्रधानमन्त्री बनने के बाद राजीव गाँधी ने लन्दन की एक प्रेस कॉन्फ्रेन्स में अपने-आप को पारसी की सन्तान बताया था, जबकि पारसियों से उनका कोई लेना-देना ही नहीं था, क्योंकि वे तो एक मुस्लिम की सन्तान थे जिसने नाम बदलकर पारसी उपनाम रख लिया था । हमें बताया गया है कि राजीव गाँधी केम्ब्रिज विश्वविद्यालय से स्नातक थे, यह अर्धसत्य है... ये तो सच है कि राजीव केम्ब्रिज यूनिवर्सिटी में मेकेनिकल इंजीनियरिंग के छात्र थे, लेकिन उन्हें वहाँ से बिना किसी डिग्री के निकलना पडा था, क्योंकि वे लगातार तीन साल फेल हो गये थे... लगभग यही हाल एडवीज एंटोनिया अलवीना माईनो उर्फ सोनिया गाँधी का था...हमें यही बताया गया है कि वे भी केम्ब्रिज यूनिवर्सिटी से स्नातक हैं... जबकि सच्चाई यह है कि सोनिया स्नातक हैं ही नहीं, वे केम्ब्रिज में पढने जरूर गईं थीं लेकिन केम्ब्रिज यूनिवर्सिटी में नहीं । सोनिया गाँधी केम्ब्रिज शहर के The Bell Education Trust में अंग्रेजी सीखने का एक कोर्स करने गई थी, ना कि केम्ब्रिज विश्वविद्यालय में (यह बात हाल ही में लोकसभा सचिवालय द्वारा माँगी गई जानकारी के तहत खुद सोनिया गाँधी ने मुहैया कराई है, उन्होंने बडे ही मासूम अन्दाज में कहा कि उन्होंने कब यह दावा किया था कि वे केम्ब्रिज से स्नातक हैं, अर्थात उनके चमचों ने यह बेपर की उडाई थी) । क्रूरता की हद तो यह थी कि राजीव का अन्तिम संस्कार हिन्दू रीतिरिवाजों के तहत किया गया, ना ही पारसी तरीके से ना ही मुस्लिम तरीके से । इसी नेहरू खानदान को भारत की जनता देश का भविष्य मानती है तथा नतमस्तक होकर पूजा भी करती है, एक इटालियन महिला जिसकी एकमात्र योग्यता यह है कि वह इस खानदान की बहू है आज देश की सबसे बडी पार्टी की कर्ताधर्ता है और रॉल को भारत का भावी प्रधान मंत्री तथा देश के 121 करोड़ लोगो का भविष्य बताया जा रहा है । मेनका गाँधी को विपक्षी पार्टियों द्वारा हाथों हाथ इसीलिये लिया था कि वे नेहरू खानदान की बहू हैं, इसलिये नहीं कि वे कोई समाजसेवी या प्राणियों पर दया रखने वाली हैं…और यदि कोई सोनिया माइनो की तुलना मदर टेरेसा या एनीबेसेण्ट से करता है तो उसकी बुद्धि पर तरस खाया जा सकता है I "गंगाधर" (गंगाधर नेहरू नहीं), यानी मोतीलाल नेहरू के पिता । नेहरू उपनाम बाद में मोतीलाल ने खुद लगा लिया था, जिसका शाब्दिक अर्थ था "नहर वाले", वरना तो उनका नाम होना चाहिये था "मोतीलाल धर", लेकिन जैसा कि इस खानदान की नाम बदलने की आदत में सुमार है उसी के मुताबिक उन्होंने यह किया । रॉबर्ट हार्डी एन्ड्रूज की किताब "ए लैम्प फ़ॉर इंडिया-द स्टोरी ऑफ़ मदाम पंडित" में उस तथाकथित गंगाधर का चित्र छपा है, जिसके अनुसार गंगाधर असल में एक सुन्नी मुसलमान था, जिसका असली नाम गयासुद्दीन गाजी था I

Thursday, December 15, 2011

”बिहारी” प्रतिभाएं अपनी बुद्धिमत्ता का लोहा मनवा रही है

वी.पी.सिंह:भारत में जब कभी बुद्धिमत्ता का जि़क्र होता है उस समय चाणक्य का नाम देश के सबसे बुद्धिमान व्यक्ति के रूप में लिया जाता है। बिहार की ही पृष्ठभूमि के चाणक्य की नीतियां आज भी न केवल भारत में बल्कि पूरे विश्व के लिए प्रासंगिक समझी जाती हैं। इसी प्रकार शिक्षा के सर्वोच्च केंद्र के रूप में समझा जाने वाला शैक्षिक संस्थान नालंदा विश्वविद्यालय भी बिहार राज्य की पावन भूमि में ही स्थित है। हम कह सकते हैं कि योग्यता, प्रतिभा तथा बुद्धिमत्ता का बिहार राज्य से पुराना नाता है। यह और बात है कि गत् चार दशकों से उसी बिहार राज्य के निवासी राज्य के अयोग्य,भ्रष्ट तथा सत्तालोलुप स्वार्थी नेताओं की गलत नीतियों के चलते आर्थिक संकट से जूझ रहे हैं तथा अपनी ज़रूरतों को पूरा करने के लिए उन्हें रोज़गार हेतु अन्य राज्यों में जाकर दर-दर की ठोकरें खानी पड़ रही हैं। और उसी बिहारी समाज के लोग आज अपराधी प्रवृति के ठाकरे घराने के लिए ‘तबेले वाले अथवा ‘रेहड़ी वाले बनकर उसकी नज़रों में खटक रहे हैं। बहरहाल, चाणक्य व नालंदा की उसी धरती ने एक बार फिर देश व दुनिया को यह दिखा दिया है कि बिहार अब भी प्रतिभावान लोगों की धरती है तथा इस राज्य में आज भी प्रतिभाओं की कोई कमी नहीं है। टेलीविज़न के सोनी चैनल पर प्रसारित होने वाले गेम शो, कौन बनेगा करोड़पति (केबीसी) सीज़न 4 तथा सीज़न 5 में लगातार बिहारी प्रतिभाएं अपनी योग्यता का लोहा मनवाती आ रही हैं। केबीसी सीज़न 4 में जहां झारखंड की राहत तसलीम जैसी साधारण गृहणी ने एक करोड़ रुपये जीतकर अपने सामान्य ज्ञान का लोहा मनवाया वहीं केबीसी सीज़न 5 में भी बिहार के ही सुशील कुमार ने पांच करोड़ रुपये जीतकर केबीसी में एक इतिहास रच डाला। इसी गेम शो, कौन बनेगा करोड़पति में सुशील कुमार से दो सप्ताह पहले बिहार के ही दरभंगा जि़ले के एक गरीब परिवार के लडक़े ने अपनी योगयता के बल पर पच्चीस लाख रुपये जीते थे। मोतीहारी के सुशील कुमार को पांच करोड़ रुपये की धनराशी जीते हुए अभी एक सप्ताह भी नहीं बीता था कि राज्य की राजधानी पटना के एक बैंक कर्मचारी अनिल कुमार ने एक करोड़ रुपये की धनराशि जीतकर पूरे देश का ध्यान बिहार की ओर आकर्षित कर दिया। आए दिन ठाकरे घराने के निशाने पर रहने वाला तथा उनके द्वारा अपमानित किया जाने वाला बिहारी समाज अपनी योग्यता व प्रतिभा के दम पर अचानक आम भारतीयों का ध्यान अपनी ओर खींचने में सफल रहा है। इन साधारण परंतु ज्ञानवान प्रतिभाओं के शानदार प्रदर्शन के परिणामस्वरूप देश के लोगों को एक बार पुन: चाणक्य की बुद्धिमानी तथा नालंदा विश्वविद्यालय की याद आने लगी है। सामान्य ज्ञान से संबंधित केबीसी गेम शो में पांच करोड़ रुपये जीतने वाले सुशील कुमार का संबंध एक ऐसे $गरीब परिवार से है जो अपने मकान के क्षतिग्रस्त हो जाने के कारण अपना गिरता हुआ मकान छोडक़र पड़ोस में एक अन्य शिक्षक की अनुकंपा पर उसी मकान में शरण लिए हुए था। सुशील व उसके पिता के पास इतना पैसा नहीं था कि वे अपने मकान की मुरम्मत तक करवा सकें। परंतु गरीबी के इस आलम में भी सुशील के पिता तथा स्वयं सुशील कुमार बीबीसी रेडियो सेवा सुनना नहीं छोड़ते थे। गौरतलब है कि बिहार देश का एक ऐसा राज्य है जहां विश्व की सबसे लोकप्रिय व ज्ञानवर्धक समाचार प्रसारण सेवा ब्रिटिश ब्रॉडकास्टिंग कारपोरेशन अर्थात् बीबीसी राज्य के अधिकांश लोगों द्वारा नियमित रूप से सुनी जाती है। देश व दुनिया के समाचारों का ज्ञान हासिल करने के प्रति बिहार के लोगों का आकर्षण ही आज देश में सिविल सर्विसिज़ की होने वाली परीक्षाओं में बिहार का प्राय: सबसे अधिक प्रतिनिधित्व रखता है। समाचार सुनने व ज्ञान अर्जित करने हेतु वहां के लोगों का यह आलम है कि गरीबी के चलते कहीं-कहीं केवल एक रेडियो को घेरकर दर्जनों लोग समाचार सुनते हैं तो कहीं चाय की दुकानों व अन्य सार्वजनिक स्थलों पर बीबीसी सेवा शुरु होने से पूर्व ही भीड़ इकट्ठी होने लगती है। कहीं रिक्शा चलाने वाले लोग भी अपने साथ रेडियो लेकर समाचार सुनते दिखाई देते हैं तो कभी गाय-भैंस की पीठ पर बैठकर उन्हें चराने वाले लोगों के हाथों में भी रेडियो नज़र आता है। ज़ाहिर है यह सब उनकी समाचार सुनने की उत्सुकता व जागरुकता का ही परिणाम है कि बिहार के लोग गरीबी के बावजूद देश और दुनिया के हालात से बाखबर रहने की पूरी कोशिश करते हैं। बहरहाल, सुशील कुमार ने पांच करोड़ रुपये जीतने के बाद स्वयं को गरीबी से उबार कर न केवल करोड़पति बना लिया बल्कि करोड़पति बनने के बाद उसके द्वारा व्यक्त किए गए विचारों को सुनकर भी ऐसा प्रतीत हुआ कि ‘बिहारी कहकर बुलाए जाने वाले यह प्रतिभाशाली युवक जनसमस्याओं व राष्ट्रीय स्तर की समस्याओं के प्रति कितना गंभीर हैं। सुशील कुमार ने बताया कि वह महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार योजना के अंतर्गत् संचालित किए जाने वाले वृक्षारोपण कार्यक्रम से इतना प्रभावित है कि वह मनरेगा की इस योजना में भी जीती हुई धनराशि का कुछ हिस्सा लगाना चाहता है। निश्चित रूप से यह सुशील कुमार की बुद्धिमत्ता व जागरुकता का ही दूसरा प्रमाण है। सुशील कुमार के मनरेगा के विज्ञापन में भी नज़र आने की संभावना है। इस संबंध में केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय के साथ उसकी बातचीत चल रही है। मनरेगा के विज्ञापन में अब तक अमिताभ बच्चन,शाहरुख खान व आमिर खान जैसे प्रसिद्ध फिल्म अभिनेताओं को देखा जा सकता है। इतना ही नहीं बल्कि वह अपने क्षेत्र में शौचालयों की कमी के परिणामस्वरूप इधर-उधर होने वाली गंदगी से भी बहुत चिंतित है तथा इसी धनराशि का कुछ हिस्सा अपने शहर में सार्वजनिक शौचालय के निर्माण कार्य में भी लगाना चाहता है। इसके अतिरिक्त उसकी इच्छा है कि वह कोई ऐसी योजना बनाए जिससे कि गरीबी की मार झेलने वाले वे बच्चे जो आर्थिक तंगी के चलते शिक्षा ग्रहण नहीं कर सकते तथा बाल्यावस्था में ही मज़दूरी करने को मजबूर हो जाते हैं, उन्हें शिक्षा प्राप्त करने का पूरा अवसर मिल सके। इसी प्रकार अनिल कुमार नामक पटना का दूसरा करोड़पति बना व्यक्ति एक ऐसा स्वास्थय केंद्र खोलने का इच्छुक है जहां असमय बीमारी अथवा दुर्घटना से पीडि़त कोई व्यक्ति अपना इलाज करा सके। गोया गरीब व साधारण परिवार के यह बिहारी प्रतिभाशाली युवक केवल करोड़पति बनकर अपना व अपने परिवार का भविष्य मात्र ही बदलने के इच्छुक नहीं बल्कि समाज व देश के लिए भी बहुत कुछ करने का हौसला इन प्रतिभाशाली युवाओं में दिखाई देता है। के बी सी में निश्चित रूप से देश के लगभग अधिकांश राज्यों के प्रतियोगियों ने हिस्सा लिया व लेते आ रहे हैं। परंतु जिस प्रकार बिहार के उपरोक्त प्रतियोगियों ने अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया है, उससे सबक लेते हुए बिहार के राजनेताओं को इन जैसे और तमाम प्रतिभाशाली युवाओं के बारे में बहुत कुछ सोचने की ज़रूरत है। इसमें कोई संदेह नहीं कि यदि इन जैसे अन्य करोड़ों होनहार युवाओं को शिक्षा ग्रहण करने के पर्याप्त अवसर मिलें तथा देश की सेवा करने का इन्हें मौक़ा मिले तो यही ‘तबेले वाले व ‘श्रमिक वर्ग की पहचान समझे जाने वाले युवाओं में इतनी क्षमता है कि वे देश, देश की राजनीति तथा देश की शासन प्रणाली का चेहरा बदल डालें। परंतु अफसोस तो इसी बात का है कि जहां गरीब व साधारण परिवार से ऐसे प्रतिभाशाली लोग के.बी.सी.के माध्यम से आगे आकर अपनी असीम योग्यताओं का परिचय दे रहे हों, वहीं उसी बिहार राज्य में परिपक्व समझे जाने वाले लगभग सभी राजनैतिक दलों के तमाम भ्रष्ट राजनेता तथा भ्रष्ट अधिकारी उसी चाणक्य की धरती को बेच खाने पर भी तुले हुए हैं। परिणामस्वरूप आज बिहार जहां बाढ़ व सूखे जैसी प्राकृतिक विपदा से नहीं उबर पा रहा है, वहीं सडक़, बिजली व पानी जैसी आधारभूत सुविधाओं की कमी के चलते विदेशी पूंजीनिवेश व उद्योगीकरण के क्षेत्र में भी यह राज्य अन्य राज्यों की तुलना में काफी पिछड़ा हुआ है और बिहार के इसी पिछड़ेपन ने जिसके जि़म्मेदार प्राय: वहां के स्थानीय राजनेता व राजनीति तथा जातिवाद जैसी विसंगतियां हैं, जिन्हों ने बिहार के लोगों को गरीबी व दया का पात्र बना दिया है। देश का कम रोजगार वाला राज्य होने के कारण बेशक आज इस राज्य के लोग बड़ी संख्या में अपने राज्य से अन्य राज्यों की ओर रोज़गार की खातिर जाते रहते हैं। परंतु देश की शासन व्यवस्था में भी बिहार के बड़े से बड़े अधिकारी तथा नीतिगत् निर्णय लेने वाले बुद्धिमान लोग देखे जा सकते हैं। सिविल सर्विसेज़ परीक्षाओं में बिहार के अग्रणी रहने का सिलसिला भी कोई नया नहीं है। आर्थिक तंगी में परवरिश पाने के बावजूद देश की सर्वोच्च सेवा में शामिल होने का बिहार के युवाओं का पुराना शौक़ है। इसी कारण आज देश के प्रत्येक कोने में बिहारी मूल के प्रशासनिक अधिकारी देखे जा सकते हैं। इसमें कोई संदेह नहीं कि यदि देश व बिहार राज्य की सरकार ऐसे प्रतिभाशाली युवाओं को शिक्षित करने की ओर गंभीरता से अपना ध्यान दे तो इन बिहारी युवाओं में इतनी क्षमता है कि वे देश की तस्वीर को बदलकर रख देंगेI

वी.पी.सिंह मोब.09971224023

यह है भारत की 10 सबसे पावरफुल महिला सीईओ

भारतीय कंपनियों में हांलाकि ज्यादा महिलाएं शीर्ष पदों पर नहीं है लेकिन जो हैं वो काफी शक्तिशाली है।एक सर्वे के मुताबिक भारत की सबसे शक्ति शक्तिआली महिला सीईओ और कोई नहीं आईसीआईसीआई बैंक की सीईओ चंदा कोचर है I यह बैंक भारत का सबसे बड़ा बैंक है। दूसरे नबंर पर है औषधि कंपनी बॉयकॉन की संस्थापक सीईओ किरण शॉ मजूमदार । तीसरे स्थान पर है विदेशी बैंक एचएसबीसी की सीईओ नैना लाल किदवई। चौथे पायदान पर भी एक बैंक है और वह है एक्सिस बैंक की शिखा शर्मा । अपोलो अस्पताल की सीईओ प्रीता रेड्डी पांचवे नंबर पर है जबकि ट्रैक्टर कंपनी टफे की सीईओ मल्लिका श्रीनिवास छठे नंबर पर है। सांतवे नबंर पर एसोचैम की अध्यक्ष स्वाति पीरामल और आठवें पर एचडीएफसी की रेणू सूद करनाड हैं। जेपी मोरगन की कल्पना मोरपारिया नोंवे और एचपी की नीलम धवन दसवें नंबर पर हैं।

Saturday, December 10, 2011

डॉ. अम्बेडकर और कोलम्बिया विश्वविद्यालय: ‘हमेशा नम्बर वन’

डा.अंबेडकर के जीवन के कई वक्ततव्य हैं, जो अनछुए से हैंI अनछुए नहीं भी हैं तो भी उनकी चर्चा प्रमुखता से कम ही हुई हैI विदेश से पढ़ाई कर भारत लौटने के बाद दलित समाज के उत्थान और देश निर्माण में उनकी भूमिका की चर्चा अक्सर की जाती हैI लेकिन उनके विश्वविद्यालयीय शिक्षा के बारे में चर्चा थोड़ी कम हो पाती हैI हम 1913 से 1916 के उस दौर की बात कर रहे हैं, जो वक्त डा. अंबेडकर ने न्यूयार्क के कोलंबिया यूनिवर्सिटी में बिताया था ऐसा डॉ. अम्बेडकर और बड़ोदा के महाराज सयाजीराव गायकवाड़ के बीच हुए उस करार से सम्भव हो पाया जिसमें विदेश से पढ़ाई के बदले 10 वर्षों तक रियासत की सेवा करने का करार हुआ था I इसी अनुबंध के तहत डॉ. अम्बेडकर का उच्च शिक्षा के लिए अमेरिका जाना तय हुआI
बीसवीं शताब्दी में डॉ. अम्बेडकर ऐसे प्रथम श्रेणी के राजनेताओं में पहले व्यक्ति थे, जिन्होने अमेरिका जाकर उच्च शिक्षा प्राप्त की थी जून 1916 में उन्होंने ‘नेशनल डिविडेन्ड इन इण्डिया ए हिस्टोरिक एण्ड ऐनेलेटिक स्टेडी’ पर शोध पूरा कर विश्वविद्यालय में जमा किया जिस के लिए डॉ. अंबेडकर को (डॉक्टर ऑफ फिलोसॉफी) पी. एच. डी. की उपाधि से सम्मानित किया गया था I डॉ. अम्बेडकर की इस सफलता से प्रेरित होकर कला संकाय के प्राध्यापकों और विद्यार्थियों ने एक विशेष भोज देकर डॉ. अम्बेडकर का सम्मान किया था जो महान व्यक्ति अब्राहन लिंकन व वाशिंगटन की परम्परा का अनुसरण था I इस शोध प्रबंध में डॉ. अम्बेडकर ने बिट्रिश सरकार द्वारा भारत के आर्थिक शोषण की एक नंगी तस्वीर दुनिया के सामने रखी जो आज एक ऐतिहासिक दस्तावेज है I
डॉ. अम्बेडकर द्वारा सामाजिक न्याय व समता के संबंध में भारतीय दलित समाज को हक दिलाने वाले संविधान निर्माण की उपलब्धि से प्रभावित होकर कोलम्बिया विश्वविद्यालय न्यूयार्क, अमेरिका ने जून 1952 में उन्हें ‘डॉक्टर ऑफ लॉ’ की मानद उपाधि प्रदान की थी I सन् 1754 में स्थापित की गई कोलंबिया युनिवर्सिटी ने अपनी स्थापना के 250 साल पूरा होने पर 2004 में अपने सौ ऐसे पूर्व छात्रों की एक लिस्ट जारी की, जिन्होंने दुनिया में महान कार्य किए और अपने क्षेत्र में प्रसिद्ध रहें I युनिवर्सिटी की सूचि में डॉ. अंबेडकर को पहले स्थान पर रखा गया I इस सूची की खास बात यह हैं इस में अमेरिका के 3 राष्ट्रपति सहित विश्व के 6 अलग-अलग देशों के राष्ट्राध्यक्ष, 40 नोबेल पुरस्कार विजेताओं, अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट के पहले न्यायाधीश सहित 8 अन्य सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश, 22 से अधिक अमेरिकी राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता शामिल हैं I इसके अलावे इस सूची में कई कंपनियों के मुख्य कार्यकारी अधिकारी, विश्व के सर्वाधिक धनवान व्यक्ति वारेन बफेट एवं कई दार्शनिक तथा नोबेल पुरस्कार विजेता शामिल हैं I सूची में जो तीन अमेरिकी राष्ट्रपति हैं, उनमें थॉडोर रूजवलेल्ट, फ्रेंकलिन रूजवेल्ट और डोविट एसनहॉवर सहित जर्जिया के राष्ट्रपति मिखैल साकाश्वीली और इथोपिया के राष्ट्रपति थॉमस हेनडिक, इटली के प्रधानमंत्री गियूलिनो अमाटो, अफगानिस्तान के प्रधानमंत्री अब्दुल जहीर, चीनी प्रधानमंत्री तंगशोयी और पोलैंड के प्रधानमंत्री भी शामिल हैं I
कोलंबिया युनिवर्सिटी में पूर्व छात्रों को सम्मानित करने के लिए एक स्मारक बनाया गया जिस पर इन 100 महान विभूतियों के नाम लिखे गये हैं इन सभी सम्मानित 100 पूर्व विद्यार्थियों के नामों को सही क्रम में लगाने के लिए वहां के विद्वानों की एक कमेटी बनाई गई उस कमेटी ने भारतीय संविधान के रचयिता तथा आधुनिक भारत के संस्थापक पितामह बाबा साहब डॉ. बी. आर. अम्बेडकर का नाम सबसे ऊपर नम्बर 1 पर रखा I इस स्मारक का अनावरण अमेरिकी राष्ट्रपति और नोबल पुरस्कार विजेता बराक ओबामा ने किया था I यह स्मारक आज भी कोलम्बिया विश्वविद्यालय के प्रांगण में शोभा मान है I

V.P.Singh
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Thursday, December 8, 2011

-: महा पुरुषो की दुर्दशा : -

गाँधी जी की आत्म कथा,पड़ी मिली एक नाली में,
शास्त्री जी भी पड़े हुए थे एक टोकरी खली में,
भीम राव आंबेडकर देखे खड़े हुए एक बस्ती में,
किताब छीन कर गुंडे ले गये दारू पी रहे मस्ती में,
लाला जी को सब ने देखा, बिकते चार रुपया में,
नेहरु, इन्द्र,राजीव देखे,मैंने लाल किले के में,
लोगो ने पेशा कर लिया,इन्हें बेच के खाने में,
चन्द्रशेखर,भगतसिंह,शिवाजी फिरते गली मोहल्लों में,
चोर उचक्के बने फिरे, पिस्तोल दबाकर अंटी में,
नेता जी को मैंने देखा,फिरे गाँव की गलियो में,
थम्सअप छाप की मोहर लगी है बात करे अंग्रेजी में,
आगे बढकर मैंने देखा लक्ष्मी बाई को झाँसी में,
छोड़ कर घोडा वे बैठी थी नगर निगम की ट्रोली में,
मेवाड़ मुकुट प्रताप को देखा, बिन घोड़े के पानी में,
याद नहीं अब उनकी गाथा,खड़े बीच राजधानी में,
गीतांजलि का एक पृष्ठ जब, मिला मिर्च को लेने में,
हुआ संकोच मुझे इस पर भी, दस पैसे भी देने में,
खोली पुड़िया जब धनिया की,चकित हो गया भाई में,
मना रही संतोष जानकी, पंचवटी के रोने में,
राम-लखन, कृष्ण को देखा, झगड़ो के ठौर- ठिकानो में,
स्वार्थ में नेता इतने गिर गये,गोली चलवाये टोलियो में,
प्रेमचन्द के मैने देखा, टिक्की और पकोड़ो में,
तुलसी दास जी पड़े हुए थे, एक होटल के कोने में,
नानक जी थे मदद गार, मुन्ने की नाक पूछने में,
कालिदास को मेघदूत, सन्देश सुनाता दौने में,
नहीं लाभ है स्मारक और, स्टुचो बनवाने में,
नहीं रखा है वर्ष गांठ और,इनके टिकट चलाने मे ,
जब तक दिल से करेना,पूजा इंसानों के बाने में,
महा पुरुषो की दुर्दशा हुई, इस भारत के आने में,
वी.पी.सिंह कहें क्या रखा है,ढ़ोंग ढकोसले वाजी में,
व्यर्थ हो गया भय्या अब,यहाँ महा पुरुषो का मरने में II
v.p.singh
Mob.09971224023
16.7.1998

डॉ.भीम राव आंबेडकर का एक सपना भारत में दलित पूंजीवाद का था : वी.पी.सिंह

Dr.Bhim Rao Ambedkar was a dream of Dalit capitalism in India : By VP Singh
भारत एवं दुनिया में सविंधान निर्माता भारत रतन डॉ. भीम राव आंबेडकर का स्थान विशेष महत्त्व रखता है इनके बताये गये मुख्य तीन निर्देशों शिक्षित बनो,संगठित रहो ,संघर्ष करो के, अतिरिक्त उनकी सोच और बहुत सी थी वे ऐसे भारत का निर्माण चाहते थे जहां सभी को बराबर का अधिकार हो,गावो का शहरी करण हो,जल्दी से जल्दी दलित लोग शहरो की तरफ पलायन करे जिससे ये बेगारी करने से बच सके तथा वे पूंजीवादी बने जिससे ये काम करने वाले न होकर काम देने वाले बने I महात्मा गाँधी हमेशा इन बातो का विरोध करते थे I बाबा साहेब की शहरी करण की नीति से प्रभावित हो कर तत्कालीन प्रधानमंत्री ज्वाहर लाल नेहरु ने 1 नबम्वर 1966 को चंडीगढ़ की स्थापना की थी जो आज भारत में विशेष महत्त्व रखता है I
आज 6 दिसंबर को भारत रतन भारतीय सविंधान निर्माता बाबा साहेब डॉ. भीम राव आंबेडकर जी का 56वां महापरिनिर्वाण दिवस है पूरा देश उन्हें सृद्धा सुमन अर्पित करता है I भारतीय सविंधान के जनक डॉ.भीम राव आंबेडकर के दलित पूंजीवाद के अलावा और कई सपने थे वे भारत को जाति मुक्त,खाद्य सरप्लस,औद्योगिक राष्ट्र ,शहरीकरण तथा हमेशा लोकतान्त्रिक बना रहना चाहते थे उनका सबसे बड़ा सपना था कि दलित जाति के लोग धनवान बने वे हमेशा नौकरी मांगने वाले नहीं बने नौकरी देने वाले बने I
गवर्नर जनरल को डॉ.आंबेडकर का पत्र:-
बात 29 अक्टूबर 1942 की है जब डॉ.आंबेडकर ने भारत के तत्कालीन गवर्नर जनरल विक्टर अलेक्जेंडर जॉन होप को दलितों की समस्याओं से सम्बंधित एक ज्ञापन दिया था डॉ.आंबेडकर गवर्नर जनरल की कार्यकारणी के सदस्य थे इस लिए यह ज्ञापन गोपनीय था डॉ.आंबेडकर के लेखो एवं भाषणों के संग्रह के दसवें खंड में आप इसे पेज संख्या 404 से 436 पर पढ़ा सकते है उक्त ज्ञापन में एक खंड है जिसमे केंद्रीय लोक निर्माण विभाग में दिए जाने वाले अनुबंधों का जिक्र किया गया है I डॉ.आंबेडकर के अनुसार केंद्रीय लोक निर्माण विभाग द्वारा दिए गये कुल 1171 अनुबंधों में से मात्र एक ठेका दलित को दिए गया था उन्होंने दलितों को और ठेके देने की व्यस्था की मांग की थी तथा इस ओर ध्यान दिलाया था कि हिन्दू,मुस्लमान और सिक्ख ठेकेदार मुनाफा कमा रहे है जबकि दलित मजदूर उनके यहाँ नौकरी कर रहे है I

भारत में महाराष्ट्र से दलित पूंजीवाद का युग शुरू :-
आज से 69 वर्ष पहले अर्थात सन 1942 में डॉ.आंबेडकर केंद्रीय लोक निर्माण विभाग में दलितों की भागेदारी की बात कर रहे थे तब शायद गिने-चुने कुछ ही दलित इतने पैसे वाले होंगे जो ठेकेदार बनने के लायक थे I बाबा साहेब का एक प्रबल सपना था कि दलितों में मोटा पैसा कमाने वाला एक वर्ग जरुर पैदा होना चाहिए I अब बिना किसी आन्दोलन बिना किसी सरकारी सहयोग के बाबा साहेब के सपनो की एक नई पीढ़ी तैयार हो रही है जिसे दलित पूंजी वाद कि संज्ञा देना गलत नहीं होगा इसकी एक झलक आप पुणे में देख सकते है I जहां पर दलित उद्योगपतियो की लम्बी सूचि आप को मिल जायेगी जिन में फार्चून निर्माण कंपनी के मालिक मिलिंद काम्बले,महाराष्ट्र की जानी मानी कंपनी एवरेस्ट स्पन पाइप के मालिक नामदेव कृष्णाजी जगताप , जीटी पेस्ट कंट्रोल मल्टी नेशनल कंपनी के मालिक राजेंद्र गायकवाड, सोलर हीटर बनाने वाली सूर्याटेक कंपनी के मालिक मुकुंद कमलाकर जिस के उपभोक्ता क्रिकेटर जहीरखान भी है तथा सतारा में चीनी मिल के मालिक स्वपिनल धिगर,टाटा मोटर्स के लिए ऑटो पार्ट्स बनाने वाले गोकुल गायकवाड,बिजली का सामान आयात करने वाली शिगनेट इंजीनियरिंग के मालिक एन.जे.कारात, आफ सेट प्रिंटिंग मशीन आयात करने वाली कंपनी ईजी केयर के मालिक आर.आर.काम्बले तथा अविनाश काम्बले की यूनाइटेड इंटर नेशनल कंपनी जिसने 10 क्षेत्रों में प्रमुख कोरियर कंपनी डीटीडीसी से फ्रैचाइजी ले रखी है ऐसे अनेको नाम एवं कंपनी है जिनका सालाना कारोबार 50 से 100 करोड़ का है I मुंबई स्थित कल्पना सरोज की कामायनी ट्यूब्स का सालाना कारोबार 300 करोड़ से ज्यादा का है इन दलित उद्योगपतियो को देख कर लगता है कि बाबा साहेब का आज से 70 साल पहले देखा गया सपना अब धीरे-धीरे पूरा हो रहा है तथा भारत में दलित पूंजीवाद की हवा बहनी शुरू हो गई है I जो भविष्य के लिए शुभ संकेत माने जा सकते है I
डिक्की अर्थात डी.आई.सी.सी.आई.( दलित इंडियन चैम्बर्स आफ कामर्स एंड इंडस्ट्री )
पुणे के दलितों उधमियो ने दलित इंडियन चैम्बर्स आफ कामर्स एंड इंडस्ट्री नामक एक ट्रेड संस्था बना रखी है तथा एक नौजवान दलित उद्योगपति मिलिंद कांबले के नेतृत्व में डिक्की ने 4,से 6 जून 2010 को पुणे में दलित ट्रेड फेयर आयोजित करके एवं 223 स्टाल लगा कर एक मील का पत्थर रख दिया है I अभी यह आयोजन राज्य स्तर पर था वर्ष 2015 में राष्ट्रीय स्तर पर दिल्ली के प्रगति मैदान में आयोजित करने का लक्ष्य तय किया गया है I
अब यह संस्था 16 से 18 दिसंबर 2011 तक चलने वाले ट्रेड फेअर का एमएमआरडीए ग्राउंड, बांद्रा - कुर्ला कॉम्प्लेक्स (BKC), बांद्रा (ई) मुंबई 400051 में आयोजन करने जा रहा है जिस का उदघाटन विश्व विख्यात दलित समीक्षक व लेखक एवं दार्शनिक श्री चन्द्र भान प्रसाद सिंह तथा गोदरेज कंपनी के प्रमुख श्री आदि गोदरेज करेगे I इन तीन दिनों में देश के जाने माने लोग हिस्सा लेगे जिनमे केंद्रीय कृषि मंत्री श्री शरद पवार,सामाजिक न्याय एवं सशक्तिकरण मंत्री श्री मुकुलवशिनिक ,महाराष्ट्र के मुख्य मंत्री श्री प्रथ्वी राज चौहान,केंद्रीय बिजली मंत्री श्री सुशील कुमार सिंधे तथा टाटा स्टील के प्रमुख श्री बी.मुत्थुरमन आदि लोग हिस्सा लेगे एवं अपने विचार प्रकट करेगे I इस ट्रेड फेअर में पूरे भारत से 350 से अधिक दलित उद्धमी हिस्सा लेगे जो अपने बनाये सामानों को प्रदिर्शित करके देश एवं दुनिया भर से आये ग्राहकों तक अपनी सीधी पकड़ बना कर अधिक मुनाफा कमाने की तरफ सीधी पहल करेगे जो भविष्य के लिया शुभ संकेत माने जा सकते हैI
आज भारत का दलित राशन कार्ड या सरकारी नौकरियो पर ही निर्भर नहीं है अब एक करोड़ से एक हजार करोड़ सालन टर्न ओवर वाले दलितों का तबका पैदा हो चुका हैI यह बात अलग है कि अभी उनकी संख्या कम है तथा कारोबार का आकर भी छोटा है लेकिन दलित उद्योगपति इतने सक्षम तो हो गये है कि वे दलित ट्रेड फेअर लगा सकते हैI
काश ! भारत की सरकार एवं देश के बड़े पूजीपतियो में यदि थोडा सी अमेरिकन सोच तथा दिल लग जाये तो कुछ ही समय में दलितों में भी अरबपतियो की एक फौज तैयार हो सकती हैI बहराल इतना संतोष तो हो ही गया है कि सरकारी विभागों के अलावा नौकरी देने वाला एक तबका दलितों के भीतर से ही पैदा हो रहा है तथा आज बाबा साहेब का दलित पूंजीवाद का सपना पूरा हो रहा हैI


V.P.Singh
Mob.09971224023
E-mail:vpsingh65@gmail.com

मै तुमसे प्रीत लगा बैठा

*****मै तुमसे प्रीत लगा बैठा *****
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मै तुमको मीत बना बैठा, मै तुमसे प्रीत लगा बैठा I
तू चाहे चंचलता कहले, तू चाहे दुर्बलता कहले,
दिल ने ज्यो मजबूर किया, मै तुमसे प्रीत लगा बैठा II
यह प्यार दीये का तेल नहीं,दो-चार दिनों का खेल नहीं,
यह तो तलवार की धरा है,कोई गुडियो का ये खेल नहीं,
मैंने जो भी कोई रेखा खीची ,तेरी तस्वीर बना बैठा II
मै चातक हू तू बदल है, मै दीपक हू तू काजल है ,
मै आंसू हू तू आँचल है, मै प्यासा तू गगा जल है,
जिसने मेरा पता पूछा, मै तेरा पता बता बैठा II
सारा मय खाना घूम गया, प्याले-प्याले को चूम गया,
तूने जब घुघट खोला, मै बिना पीये ही झूम गया ,
मुझ को जब भी होश हुआ, मै तेरा अलख लगा बैठा II

तू चाहे दीवाना कह ले, तू चाहे मस्ताना कह ले,
तू चाहे पागलपन कह ले, तू चाहे नव सृजन कह ले,
मै बेगाना दीवाना हू, जो तुमसे चाहत लगा बैठा II
चाहत पर कोई जोर नहीं, दिल में तू है,कोई और नहीं ,
सब दिल दरवाजे बंद रखे, आँखों के रस्ते समां बैठा,
मै तुमसे प्रीत लगा बैठा, मै तुमको मीत बना बैठा II
एक दर्द मुझे है सता रहा, दिन-रात मुंझे ये रुला रहा,
एक प्रेमी दीवाना तेरा, आ जाओ तुम को बुला रहा ,
वी.पी. सिंह अपने दिल को, तेरे हाथो लुटा बैठा II
मै तुमसे प्रीत लगा बैठा, मै तुमको मीत बना बैठा II