शशि चांदनी फैली थी, बैठी चाँद चकोर
गोरी छत पर थी खड़ी, देखे चारो ओर
ठंडक उसके रूप की,उसके मुख की छाँव
नदी किनारे हो बसा,ज्यो परियों का गाँव
ना कोई मिन्नत हुई, ना ही कोई शोर
ऐसे पकड़ा उसने मेरे,मन मंदिर का चोर
अपने दिल को फिर भी उससे,रखना चाहा दूर
दिन प्रतिदिन हुए उससे हम,मिलने को मजबूर
नहीं बया हम कर सकते,अब दर्दे दिल का हाल
सतयुग,द्वापर,त्रेता से,यहाँ बिछा प्रेम का जाल
दर्द समझिये उस दिल का भी,रहता है जो दूर
मिले आत्मा दिल से दिल की,नहीं कोई खोट कसूर
वी.पी.सिंह को आज भी उसके,सता रहे है ख्याल
उस बेदर्दी जालिम ने,जब दिल को किया हलाल
वी.पी.सिंह
शेर:-
कभी उसने अपना हमें बनाया ही नहीं
जूठा ही सही प्यार जताया ही नहीं
कसूर अपना हम मान भी जाते ,
क्या करे कसूर उसने हमे बताया ही नहीं
Friday, April 6, 2012
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