------ कभी जमीं कभी आसमां --------
कभी जमीं कभी आसमां समझ में नहीं आता .
इस दिल का ठिकाना भी समझ में नहीं आता .
मेरी आँखें उसकी यादों के चिराग तो नहीं .
क्यूँ आये बस वो ही नज़ीर समझ में नहीं आता .
चाहे अनचाहे मै उसे याद किया करता हूँ
ये लत है या आदत समझ में नहीं आता .
कमबखत आशिक़ी ने जीना हराम कर दिया.
उसे भूलू या अपनी जान दूँ समझ में नहीं आता .
इस तरफ मेरा घर है उस तरफ उसका घर
इधर जाऊं या उधर समझ में नहीं आता .
पागल सा बन के रह गया कुछ सोच सोचकर.
पहले हँसू या रोऊँ समझ में नहीं आता .
लिफाफा फट चूका मजमून भी काफी पुराना हो गया
उसे दूँ यह ख़त या जला दूँ समझ में नहीं आता .
उसकी वफ़ा पर अब मुझे शक़ होने लगा है.
उसे यार कहूं या गद्दार समझ में नहीं आता .
रक़ीबों के साथ बैठे हैं अजीज-ओ-मोहतरिम
कैसे करूँ सलाम समझ में नहीं आता .
समझले दिल को मस्तग़न कुछ और न समझ.
फिर खुद समझ जायेगा जो समझ में नहीं आता .
V.P.Singh
कभी जमीं कभी आसमां समझ में नहीं आता .
इस दिल का ठिकाना भी समझ में नहीं आता .
मेरी आँखें उसकी यादों के चिराग तो नहीं .
क्यूँ आये बस वो ही नज़ीर समझ में नहीं आता .
चाहे अनचाहे मै उसे याद किया करता हूँ
ये लत है या आदत समझ में नहीं आता .
कमबखत आशिक़ी ने जीना हराम कर दिया.
उसे भूलू या अपनी जान दूँ समझ में नहीं आता .
इस तरफ मेरा घर है उस तरफ उसका घर
इधर जाऊं या उधर समझ में नहीं आता .
पागल सा बन के रह गया कुछ सोच सोचकर.
पहले हँसू या रोऊँ समझ में नहीं आता .
लिफाफा फट चूका मजमून भी काफी पुराना हो गया
उसे दूँ यह ख़त या जला दूँ समझ में नहीं आता .
उसकी वफ़ा पर अब मुझे शक़ होने लगा है.
उसे यार कहूं या गद्दार समझ में नहीं आता .
रक़ीबों के साथ बैठे हैं अजीज-ओ-मोहतरिम
कैसे करूँ सलाम समझ में नहीं आता .
समझले दिल को मस्तग़न कुछ और न समझ.
फिर खुद समझ जायेगा जो समझ में नहीं आता .
V.P.Singh
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