Tuesday, August 1, 2017

---- अपनी खुशियां कम लिखना---

---- अपनी खुशियां कम लिखना---

अपनी खुशियां कम लिखना,
औरों के भी गम लिखना। 
हँसते अधरों के पीछे,
कितनी ऑंखें नम लिखना।
किसका अब विश्वास करें हम,
झूठी हुई कसम लिखना। 
महलों में तो रोज मौज हैं,
कुटियों के मातम लिखना। 
तंत्र-मंत्र में डूबे हैं सब,
लोकतंत्र बेदम लिखना। 
नेताओं के पेट बढे हैं,
सब कुछ करें हज़म लिखना। 
मतलब हो तो गैरों की भी,
भरते लोग चिलम लिखना। 
अब तक पूज्य बने थे जो,
वे भी हुए अधम लिखना। 
भर दे सबके घावों को,
ऐसा कोई मरहम लिखना।
झूठों के गढ़ पर सच के,
फहरें अब परचम लिखना।
अपनी खुशियां कम लिखना,
औरों के भी गम लिखना। 

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