Wednesday, August 2, 2017

--:पत्थर है तेरे बोल:--





पत्थर हुए है बोल नज़ाकत चली गई I
मिलने को तो मिल रहे है मोहब्बत चली गई I
सीने में अपने आप ही घुटने लगा है दम,
दिल रहा गया है दर्द कि लज्जत चली गई I
तुम मुझको देखते हो तुम्हे देखता हूं मै,
पहचान है तो क्या हुआ चाहत चली गई I
दोस्त अपने आप ये दुनिया को क्या हुआ,

लगता है जैसे आकर क़यामत चली गई I
उम्मीद थी हमको जो आप ने किया,
खुशिया आकर दर से वापिस चली गई I
लगता हैविम” तेरा जनाजा उठेगा  अब,
लोगो कि भीड़ आकर दर से वापिस चली गई I

                                                 V.P.Singh
                                                 Mob.99 71 22 40 23













No comments:

Post a Comment