पत्थर हुए है
बोल
नज़ाकत
चली
गई
I
मिलने को तो मिल रहे
है
मोहब्बत
चली
गई
I
सीने में अपने
आप
ही
घुटने
लगा
है
दम,
दिल रहा गया
है
दर्द
कि
लज्जत
चली
गई I
तुम मुझको देखते
हो
तुम्हे
देखता
हूं
मै,
पहचान है तो
क्या
हुआ
चाहत
चली
गई I
ऐ दोस्त अपने
आप
ये
दुनिया
को
क्या
हुआ,
लगता है जैसे
आकर
क़यामत
चली
गई I
उम्मीद न थी
हमको
जो
आप
ने
किया,
खुशिया आकर दर
से
वापिस
चली
गई I
लगता है “विम”
तेरा
जनाजा
उठेगा अब,
लोगो कि भीड़ आकर दर
से
वापिस
चली
गई I
V.P.Singh
Mob.99 71 22 40 23
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