Wednesday, April 15, 2015

..........दिल पर यूँ ही चोट लगी...........


दिल पर यूँ ही चोट लगी तो,कुछ दिन ख़ूब मलाल किया
पुख़्ता उम्र को बच्चों जैसे,रो-रो कर बेहाल किया
दुःख के छोटे गांव से हमने,शहर-ए-वस्ल को रुक्सत की
शहर-ए-वस्ल ने नींद उड़ा कर,ख़्वाबों को बेहाल किया
शहर-ए-वस्ल ने नींद उड़ा कर,ख़्वाबों को बेहाल किया
उथले कुएँ भी कल तक,पानी से जो जलथल थे
अब के बादल ऐसे सूखे,नद्दी को कंगाल किया
सूरज जब तक ढाल रहा था,सोना चाँदी आँखों में
भीड़ में सिक्के ख़ूब उछाले,सब को मालामाल किया
लेकिन जब से सूरज डूबा,ऐसा घोर अँधेरा है
साये सब अदृश्य हुये और,आंखों को कंगाल किया
सख़्त ज़मीं में फूल उगाते,तो कहते कुछ बात हुई
गम में तुमने आँसू बो कर,ऐसा कौन कमाल किया
आख़िर में'सिंह'चले गये,अपने रंग में डूबा गये
मुझको दुआ तक ना दी,शहर को अबीर गुलाल किया
                                        वी.पी.सिंह


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