Monday, June 13, 2011

--:दर्दे-दिल:--

अब दिल कि तरफ दर्द कि यादगार बहुत है I
इस दुनिया में जख्मो कि तलबगार बहुत है I
अब टूट रहा है मेरी हस्ती का तसुब्बुर ,
इस वक्त मुझे तुमसे सरोकार बहुत है I
हर सांस उखड जाने कि कोशिस में परेशां I
मेरे सीने में कोई है जो गिरफ्तार बहुत है I
पानी से उलझते हुए इस इन्शान का शोर I
उस ओर भी होगा मगर इस ओर बहुत है I
मिट्टी कि यह दीवार कही टूट न जाये ,
रोको ! कि मेरे खून कि रफ़्तार बहुत है I
तेरे बिछुड़ने की जुदाई सताती है हर वक्त I
ऐसा लगता है मुझे तुमसे प्यार बहुत है I
v.p.singh 5.3.1981
शेर :-
हँसना आया तो लबों ने साथ छोड़ दिया I
रोना आया तो अश्को ने साथ छोड़ दिया I
हालत यह हुई कि जनाजा तैयार हुआ ,
इस मुकाम पर भी कंधनो ने साथ छोड़ दिया I

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